DELHI LADAKH ROAD TRIP PT.1
Amid no where
भोपाल से 5 अगस्त को तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार होके 6 अगस्त की सुबह निजामुद्दीन स्टेशन उतरे,हमने पहले ही एक ट्रेवल एजेंट से सात सीटर टवेरा बुक कर रखी थी जो स्टेशन पर तैयार खड़ी थी -ड्राईवर था आर पी सिंह नाम का एक युवा जिसके कंधो पर अगले कुछ दिनों तक हमारे जीवन का भार था,तय किया था कि भले ही हम सात निष्णात वाहन चालक थे किन्तु कोई भी स्वत:गाडी नही चलाएगा व ड्राईवर को किसी तरह का निर्देश नही देगा,खैर हम सब अपनी सीट पर बैठ गये सामान छत पे और तुरंत ही निकल पड़े ताकि दिल्ली के ट्रैफिक के शुरू होने के पहले दिल्ली से बाहर हो जाए,लम्बी यात्रा थी और सभी को घर से ढेर ढेर खाने का सामान मिला था जो एक बैग में रख दिया था पर जब गाडी चलने पर उसे ढूँढा गया तो गायब,याद आया कि ट्रेन की बर्थ के पास हुक पर लटका दिया था पर उतारना भूल गये,क्या कर सकते थे ,पूरी यात्रा में बार बार उस खाने के बैग की याद आने वाली थी ।
आधे घंटे में दिल्ली से बाहर निकल गये और रास्ते में एक ढाबे पे रुक कर नित्य कर्मो से निवृत हो नाश्ता किया और मनाली का रास्ता पकड़ा ,मनाली लेह हाईवे से जाना तय हुआ था ,ये रास्ता बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन द्वारा लेह तक पहुचने के वैकल्पिक मार्ग के रूप में तैयार किया गया है पहले श्रीनगर सोनमर्ग कारगिल होते हुए एकलौता रास्ता था ।
मनाली – रोहतांग — कोकसर – टाण्डी – केलांग – जिस्पा – दारचा – जिंगजिंगबार – बारालाचा ला – सरचू – गाटा लूप – नकीला – लाचुलुंग ला – पांग – मोरे मैदान – तंगलंग ला – उप्शी – कारु – लेह
चंडीगढ़ से थोडा पहले रास्ता मनाली के लिए शुरू हुआ और हाईवे की गति को तिलांजलि देना पड़ी,पहाड़ी रास्ता शुरू हो चूका था जो की खतरनाक भी था और लुभावना भी।
अब मुश्किलों का दौर शुरू हुआ जिसके लिए मानसिक रूप से पूरी तरह सातो तैयार थे,गाडी का एक पहिया पंक्चर हो गया और उसे बदल कर अगले उपलब्ध जगह उसे ठीक करवा के आगे बढ़ने में लगभग आधा घंटा लग गया ,बिना स्टेपनी के आगे बढ़ना मूर्खता होती।
शुरूआती हिमालय देख के आनंद आ रहा था हल्की ठंडी हवा चल रही थी और बातचीत व जोक्स का दौर भी ,जैसे जैसे ऊचाई बढ़ रही थी वैसे ही हल्की से तेज ठण्ड का दौर भी शुरू हुआ और कार की खिडकिया बंद हो गयी,अब तक ड्राईवर भी हमसे खुल चूका था और हमारा आठवा साथी हो गया था ।
देवदार और चीड के वृक्ष दिखने लगे थे, ऐसे ही एक सुन्दर सी जगह पर पहाड़ी के किनारे बसे हुए एक ढाबे में पनीर की सब्जी दाल फ्राई जीरा राइस लस्सी आदि लंच किया और दोपहर समाप्त होते मंडी तक पहुच गये थे पर काफी उजाला था तो और आगे कही अच्छी सी जगह रुक के नाईट हाल्ट का निश्चय किया, बिलासपुर (हि.प्र.) पहुचते पहुचते बादल छाने लगे थे और बिजली की चमक व गडगडाहट दिखाई/सुनाई दे रही थी तब रास्ते के किनारे एक गेस्ट हाउस दिखा ,ऑफ सीजन था इसलिए पूरा खाली था अत:बेहद सस्ते में रात बिताने की व्यवस्था होने से सब प्रसन्न थे।
कुछ ही आगे एक ढाबा भी था तो पैदल ही पहुचे खूब भूख लगी थी तो फटाफट खाने का आर्डर दिया और तभी मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी और लाइट चली गयी ,घुप्प अँधेरा ,ठण्ड,पहाड़ी और घनघोर बारिश ,हॉलीवुड की सारी हॉरर फिल्मो के डरावने सीन याद आ गये लगा की अभी कही से कोई वैम्पायर आएगी सफ़ेद कपड़ो में या कही से गीत सुनाई देगा “कही दीप जले कही दिल” या गुमनाम है कोई”।
खाना तो खा लिया पर अब वापस कैसे जाए ? कपडे गीले हो गये तो सूखेंगे कब और कैसे ?तभी ड्राईवर बोला की मैं अकेले जाके गाडी ले आता हु ताकि सिर्फ मेरे ही कपडे भीगेंगे तो उसे ढेर सारा धन्यवाद दिया और हम सब वापस आके दिनभर की यात्रा के थके मांदे सुबह ठीक 7 बजे आगे की यात्रा शुरू करने के निर्देश लेके सो गये इस तरह पहला दिन ख़त्म हुआ ।
दूसरा दिन – बिलासपुर से केलोंग
अगले दिन ठीक सात बजे (बिना नहाये)सब समय से निकले और चाय नाश्ता करते हुए आगे बढे । यहाँ से मनाली तक का रास्ता बेहद ऊँचा नीचा और घुमावदार किन्तु अत्यंत खुबसूरत था,घने जंगल, गहरी घाटियाँ,नीचे बल खाती कल कल बहती तेज़ व्यास नदी एक तरफ तो दूसरी तरफ सेवफल के बाग़ जिनमे छोटे सेब भी लगे थे ,कमाल की खूबसूरती चारो और बिखरी हुई थी बीच बीच में सूरज भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा था,हम लोग ऐसी ही एक जगह नदी किनारे रुक गये और थोड़ी देर माहौल का आनंद लिया ।
अपनी गाडी होने से ये अतिरिक्त फायदा था,खैर ऐसी जगह से मन तो कभी भरेगा नही पर पहाड़ो में कब मौसम बिगड़ जाए कहा नही जा सकता तो सुरक्षित रास्ता तय करते रहना ही अकलमंदी होती है।
दोपहर होते व्यास पर बने एक डैम को पार कर भुंतर पहुचे,यहाँ मनाली के लिए एअरपोर्ट है और यही से एक रास्ता पार्वती नदी के किनारे बसे खुबसूरत कसोल और धार्मिक जगह मणिकर्ण की तरफ जाता है,इसी जगह पार्वती नदी और व्यास (Beas) का संगम होता है,अलग रंग की दो धाराए स्पष्ट दिखती है जो आगे एक ही रंग में आ जाती है।
थोड़ी देर यहाँ भी रुके और फिर कुल्लू पार करके मनाली का रास्ता पकड़ा, पूर्व में परिवार के साथ दो बार और ट्रेकिंग के लिए एक बार मनाली कसोल मणिकर्ण आ चूका हु पर इस जगह का आकर्षण कभी समाप्त नही होता,देवदार के जंगल से आगे बढे तो ऊंचाई बढ़ना शुरू हो गयी थी,कुल्लू 1280 मीटर (4000 फीट) की ऊंचाई पर है एवं मनाली 2050 (6700 फीट) पर , ऊंचाई के साथ हवा पतली हो जाती है एवं सूर्य की गर्मी को सोखने की उसकी क्षमता भी कम हो जाती है तो ठण्ड बढ़ने लगती है ,जैसे आगे बढ़ते गये ठंडक भी बढ़ने लगी।
कुल्लू से 40 किमी दूर मनाली पहुचे तब वहा हल्की बारिश हो रही थी,लोहे का पुल पार कर रोहतांग के रास्ते पे नदी किनारे के एक सुन्दर से ढाबे पे रुके और पंजाबी स्टाइल का लंच लिया….इसके बाद रोहतांग पास का लोमहर्षक सफ़र शुरू हुआ।
रोहतांग दर्रा– 13,050 फीट/समुद्री तल से 4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है ‘रोहतांग दर्रा ‘हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है। रोहतांग इस जगह का नया नाम है। यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। उत्तर में मनाली से 51 किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह के मुख्यमार्ग में पड़ता है। इसे लाहोल और स्पीति जिलों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। व्यास नदी का उदगम भी यही से है।रोहतांग दर्रे में स्कीइंग और ट्रेकिंग करने की अपार सुविधा हैं।
हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण इस क्षेत्र में गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ रही है। यह भी प्रदूषण बढ़ाने में एक कारक सिद्ध हो रही हैं ।
बारिश में सड़क पर भरा पानी
खैर,आगे उंचाई बढ़ रही थी ठण्ड बढ़ रही थी बारिश भी हो रही थी फिसलन बहुत थी सड़क पर,डर भी लग रहा था पर धीरे धीरे ऊपर तक पहुच के पार किया और खोकसर पहुचे,यहाँ पहला चेक पॉइंट है जहा आपको गाड़ी न.रजिस्टर करनी होती है ताकि वाहनों पर निगाह रखी जा सके यहाँ के आगे हर जगह हिमालय की औसत ऊंचाई 11000 फीट (3300 मीटर) है एवं बेहद खतरनाक रास्ते है अत:कौन पहुच गया कौन नही इस बात की जानकारी के लिए ये आवश्यक है।
2 बज चुके थे और अगला रात्रि विश्राम स्थल केलोंग अभी भी 50 किमी दूर था पर अब तेज गति से गाडी चलाना न तो उचित था ना ही संभव था,बेहद उबड़ खाबड़ सड़क कही कही तो ना के बराबर पार करते शाम 6 बजे केलोंग पहुचे । लाहौल स्पीती का जिला मुख्यालय ये स्थान सिर्फ पहाड़ो को काट के बसाया नगर लगा,खूब नीचे से चंद्रभागा नदी का शोर सुनाई दे रहा था ,यही के एक होटल में 3 कमरे किराये पे लिए और खाना खा के रात्रि विश्राम किया। कल से लगभग पक्की सड़क रहित रास्तो से गुजरना होगा तो मानसिक तैयारी जरूरी थी।
तीसरा दिन – केलोंग से पांग
आज से लद्दाख क्षेत्र की यात्रा का आरंभ था और दिन भर पहाड़ो की यात्रा में मनुष्यों की अत्यंत न्यून बसाहट वाले स्थल से गुजरना था |
केलोंग से लेह का रास्ता जिसे दुनिया के सबसे दुर्गम रास्तों में एक माना जाता है, मनाली से केलोंग होते हुए जब हम हिमाचल की सीमा के पास पहुँचे तो सरचू का पठारी भाग आ गया।
पतली सी सड़क का ये सफर तब रोंगटे खड़ा कर देने वाला हो जाता है जब सामने से अचानक बस या लॉरी आपके सामने आ जाए।यहाँ पूरे समय सेना के लम्बे लंबे काफिले चलते रहते है जो सिआचीन तक सामान और सैनिको को लाने ले जाने का काम करते है
सरचू से थोड़ा आगे जाने पर सारप नदी मिलती है। इस नदी को पार करते ही अचानक ही एकदम से चढ़ाई आ जाती है और मुसाफ़िरों का सामना होता है 21 चक्करों वाले इस हेयरपिन बेंड से ,जिसे गाटा लूप्स (Gata Loops) के नाम से जाना जाता है। सात किमी लंबे इस लूप के चक्कर काटने में ड्राईवर के पसीने छूट जाते हैं।
गाटा लूप्स को शुरुआत से अंत तक पूरा करते ही आप दो हजार फीट ऊपर आ जाते हैं और पांग की ओर निकल जाते हैं।
इससे पहले हमें तीन अत्यंत ऊंचाई वाले दर्रे को पार करना था जिसके लिए हम ड्राईवर की कुशलता पर निर्भर थे
बरलाचा ला (4890 मी 16040 फी)
नकी ला (4769 मी 15650 फी)
लाचुंग ला(5059 मी 16616 फी)
तीनो ही दर्रे खतरनाक रास्तो से पार किये जाते है इसी बीच 21 बेंड वाला गाटा लूप
खतरनाक घाटा लूप
इस सब जगहों का वर्णन शब्दों में संभव नही है,ये आप इस यात्रा के दौरान अनुभव करके ही जान सकते है।विमान से 4 दिन में लद्दाख भ्रमण आपको जगह देख लेने का संतोष तो दे सकता है किन्तु वास्तविक खूबसूरती का आनंद लेना हो तो सड़क मार्ग से ही जाईये।
केलोंग से धीरे धीरे सरचु पहुचे रास्ते पर और दिन काफी बचा था तो सोचा रात्रि विश्राम पांग में करेंगे,आगे विभिन्न रंग के पहाड़ हरे ,नीले ,पीले,भूरे ,लाल सभी रंगों में रंगे, अवर्णनीय सुन्दरता चारो और बिखरी पड़ी है और देखने वाले गिने चुने यात्री बस।
विभिन्न रंगों के पर्वत
विभिन्न रंगों के पर्वत
विभिन्न रंगों के पर्वत
विभिन्न रंगों के पर्वत
हवा के वजह से पहाड़ो में हुए कटाव ऐसे लगते है मानो किसी मूर्तिकार ने छेनी हतोड़ी से मुर्तिया बनाने का प्रयास किया हो
प्रकृति निर्मित मूर्तिया
प्रकृति निर्मित मूर्तिया
प्रकृति निर्मित मूर्तिया
प्रकृति निर्मित मूर्तिया
प्रकृति निर्मित मूर्तिया
एक जगह हवा के कटाव से पहाड़ के मध्य दरवाजे जैसी आकृति निर्मित हो गयी और इंजिनियरो ने उसी में से सड़क निकाल कर उसका खूबसूरती से उपयोग कर लिया है..आप अवाक रह जाते है,मस्तिष्क विचार मुक्त हो जाता है,आप बस विधाता के बनाये चित्र में मग्न हो जाते हो,कितना भी लिखू फिर भी पांच दस प्रतिशत से अधिक नही हो पायेगा और कितने भी फोटो लु वास्तविक सुन्दरता से कोसो दूर होंगे,हर व्यक्ति को सड़क मार्ग से ही जाना चाहिए |
ये हम सात लोग कई बार कहते रहे।रास्ते के खतरों को देखते हुए बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन ने रोचक साइन बोर्ड लगा रखे है।
BRO के रोचक साइन बोर्ड
BRO के रोचक साइन बोर्ड
BRO के रोचक साइन बोर्ड
BRO के रोचक साइन बोर्ड
खैर सम्मोहित अवस्था में ही चलते हुए कब पांग पहुचे पता नहीं लगा,एक 10 बिस्तरो वाले टेंट में हम लोग मात्र 50 रुपये प्रति बिस्तर के खर्च में रुके और सारे ही 10 बुक कर लिए ताकि प्राइवेसी बनी रहे,यात्रा में तो हम अति प्रसन्न रहे पर शरीर पर होने वाले ऊंचाई के प्रभाव से मुक्त नही हो पाये थे, विभिन्न दर्रो की ऊंचाई फिर नीचे बारा हज़ार तक उतरना फिर अगले दर्रे पर 15/16 हज़ार चढ़ना इसको शरीर एडजस्ट नही कर पाया।
पांग में पहुचते जब होश आया तो हमारे पांच साथी सर्दी सरदर्द और उलटी से परेशान थे और सबसे बुरी हालत ड्राईवर की थी,लगा की ऐसी हालत में आगे की यात्रा कैसे होगी। सिर्फ मै और छोटा भाई मनोज इन परिस्थितियों के अभ्यस्त थे अत:हमारे ऊपर इन ऊंचाईयो का प्रभाव नही के बराबर हुआ। सबकी हालत देख कर हम दोनों ने निर्णय लिया की एक दिन अतिरिक्त पांग में बिताएंगे ताकि सब स्वस्थ हो सके किन्तु आश्चर्य रातभर के विश्राम ने शरीर को ऊंचाई के अनुकूल कर लिया था और सुबह सभी स्वस्थ थे,एक नए उत्साह से सब आगे की यात्रा के लिए उत्सुक थे सो बिना समय गवाए निकल पड़े ताकि शाम तक लेह पहुच सके ।
पांग में हमारा रहवास
पांग से लेह
पांग में सुबह काफी ठंडी और गीली थी ,रात बारिश हुई थी और वहा माइनस में तापमान अक्सर होता है पर बावजूद इसके सभी सुबह सुबह ऐसे फ्रेश थे जैसे रात में किसी को बुखार आदि कोई समस्या थी ही नही,ये एक अच्छी बात थी जिसमे एक पूरा दिन बच गया था,नाश्ते में ब्रेड ऑमलेट और चाय ही उपलब्ध थी ,हमारे पुलिस वाले मित्र अशोक भाई शुद्ध शाकाहारी निकले और ब्रेड से काम चलाया, पता चला की लेह से पहले अब कोई गाँव या कैंप नही जहा कुछ खाने को मिल सके।
ड्राईवर भी चाक चौबंद था और उसका विश्वास देख के हमने उसे भी चलाने का क्लेअरेंस दे दिया था।
वहा से चले फिर से उसी दुनिया में जिसने कल मंत्रमुग्ध कर दिया था,
पांग 4600 मीटर ( 15100 फीट)की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 10 किमी बाद चढ़ते हुए हम moore plains पहुचे जहा (4730 मी15520 फी) पर एक और आश्चर्य सामने था,लगभग 40 किलोमीटर लम्बा सपाट मैदान वो भी हिमालय में 15500 फुट की ऊंचाई पर,अच्छी हालत में सड़क और साथ में एक छोटी सी नदी,सड़क के दोनों और एक या दो किलोमीटर दुरी पर रंग बिरंगे पर्वत और हवाओं द्वारा बनाई कटावदार मूर्तियों की बनावट…पढ़ के आप कितनी भी कल्पना करे वास्तविक दृश्य नही सोच पायेंगे,अच्छी गति से चलते हुए हम एक और दर्रे की तरफ बढ़ रहे थे टंगलंग ला 5328 मीटर याने 17480 फुट की ऊंचाई पर (यहाँ बनी सड़क विश्व की दूसरी सबसे ऊँची motorable रोड है )
जैसे जैसे ऊपर की और बढे बारिश कीचड और आगे ऊंचाई पर बर्फ़बारी जिससे खून जमा देनेवाली या हड्डिया कंपकपा देने वाली ठण्ड थी। हम सब दम साधे सिकुड़े हुए बैठे थे ,किसी के मुह से आवाज़ नही निकल रही थी,सिर्फ हमारा युवा ड्राईवर रूद्र प्रताप सिंह ख़ामोशी से गाडी चला रहा था पूरी तन्मयता के साथ,एकदम ऊपर पहुच कर गाडी रुकवाई और फोटो लिए पर ठण्ड बर्दाश्त के बाहर हो रही थी तो फ़टाफ़ट कार में बैठ गये वहा से सब कुछ नीचे था दूर दूर तक फैले सैकड़ो हजारो पहाड़,हमारे एक साथी आशीष ने इन्हें पहाड़ो का जंगल नाम दे दिया।
यहाँ से लेह सिर्फ 80 किमी रह गया था और अब नीचे (3500 मी 11482 फी) उतरना था…फिसलन भरी संकरी सड़क दोनों और बर्फीले पर्वत ऐसे में अचानक कोई बड़ी सी गाडी आ जाये तो मुसीबत,पूरे ही मार्ग पर गाडियों की क्रासिंग एक बहुत ही कलात्मक ड्राइविंग का नज़ारा पेश करती है और इतने कोने से निकलती है की दिल जोरो से धक् धक् करता है ,रास्ते में कई खाई में गिरे हुए वाहनों के अवशेष भी हमारे लिए आतंक निर्मित किये हुए थे।
इसी रोमांच की खोज में मनुष्य खतरों की यात्रा पर निकलता है और मनाली लेह मार्ग उनके इसी रोमांच की पूर्ती करता है,किसी भी क्षण गाडी दो चार हज़ार फुट नीचे खाई में गिर सकती है और सब ख़तम,अगले दिन अखबारों में 4 लाइन की न्यूज़ बस जिसे अपने घरो में हम रोज़ ही पढ़ते है और भूल जाते है पर यहाँ हम सबो के रोंगटे खड़े हो गये थे नीचे देख देख के।
रुमसे (4260)पार करते हुए आगे बढे अब मौसम भी साफ़ था और सड़क भी उत्तम थी तभी एक मोड़ पे बोर्ड दिखा जिसपे लिखा था “प्रथम सिन्धु दर्शन”और जैसे ही अगला मोड़ आया सामने पूरी रफ़्तार से बहती हुई सिन्धु नदी के दर्शन हुए।
ये वही नदी है जिसके अपभ्रंश से हिन्दू शब्द का निर्माण हुआ..अरबी जगत में स का उच्चारण ह होता है इसी से सिन्धु हिन्दू हो गया और हम भारतवासी हिंदुस्तानी कहलाने लगे
Welcome
उपशी(3480) पहुचे तब दोपहर 3 बजे थे ,नदी किनारे एक जगह चाय पीने रुके ।उपशी से ही एक रास्ता श्रीनगर और जम्मू तरह जाता है दूसरा मनाली की तरफ जिससे हम आ रहे थे,लगभग 4 बजे लेह पहुचे और एक होटल में कमरे बुक कर सभी बिस्तरो के हवाले हो गये। अब अगले 5/6 दिन लेह ही हमारा हेड क्वार्टर था। यहाँ होटल रूम महंगे नही लगे हमे जबकि सभी टूरिस्ट सेण्टर में रहना सबसे महंगा पड़ता है ,केलोंग या बिलासपुर में भी एक रात्रि के तीन सौ ही लगे एक कमरे के । शहर से पहले या आगे कही रुकना चाहिए ये सीखा हमने।
Bohot badiya
ReplyDeleteThanks 🙏🏼
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