INEXPRESSIBLE KONKAN
कोंकण अथवा कोंकण तट
भारत के पश्चिमी तट का पर्वतीय अनुभाग हैं। यह 720 कि.मी लंबा समुद्र तट है। कोंकण में महाराष्ट्र और गोवा के तटीय जिले आते है। कोंकण भारत में महाराष्ट्र राज्य का कोस्टल डिवीजन है। ट्रॉपिकल बीचेस के साथ-साथ एक टूरिस्ट एरिया भी है, यहां की हरियाली, गहरी घाटियां, वॉटरफॉल्स आपको स्वर्ग जैसा एहसास दिलाएंगी। सर्दियों के साथ-साथ यहां मानसून में भी लोग सबसे ज्यादा घूमना पसंद करते हैं। इसके अलावा यहां आप कई एक्टिविटीज का भी मजा ले सकते हैं।
अन्य प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्रों की तरह कोंकण अधिक प्रसिद्ध नही है शायद यही कारण है कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता अब तक बरकरार है। यहाँ सौ से भी अधिक समुद्र तट है किंतु ज़्यादातर निर्जन है अतः बेहद सुंदर साफ़ सुथरे व प्राकृतिक दृश्यावलियों से भरे हुए है।अधिकांश महाराष्ट्र के ही पर्यटक यहाँ आते है।
इस वर्ष (२०२१) की सर्दियों में यही के भ्रमण की योजना बनाई और हमेशा की तरह साथी भी मिल गए
पहला दिन (19 दिसंबर 2021)
भोपाल से मंगला एक्सप्रेस से सफ़र की शुरुआत हुई एवं सुबह पनवेल के आगे कोंकण रेल्वे का अत्यंत लुभावना सफ़र शुरू हुआ कोंकण रेल्वे की स्थापना 26 जनवरी 1998 में हुई थी। इसका मुख्यालय नवी मुंबई में स्थित है। कोंकण रेलवे भारत की अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना थी जिसमें 736 कि॰मी॰ लंबी यह लाइन महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्यों को जोड़ती है जो एक ऐसा क्षेत्र है जहां आर-पार बहती नदियां, गहरी घाटियां और आसमान छूते हुए पहाड़ हैं।पहाड़ों में कई सारी सुरंगो का निर्माण कर इस लाइन को पूर्ण किया गया है।
दूसरा दिन (20 दिसंबर 2021)
चौबीस घण्टे की यात्रा का रोमांच अलग ही अनुभव देता है ।छोटी बड़ी कई सुरंगो (जिनमे कुछ पाँच से सात किमी लम्बी है)को पार कर हम सिंधूदुर्ग स्टेशन पहुँचे। यहाँ हमारे यात्रा गाइड श्री प्रथमेश दलवी हमें लेने आए थे। सामान गाड़ी में लादकर हम पहले पड़ाव तलगाँव स्थित उनके रिज़ॉर्ट Nature Plus Agro Tourist Cottages पहुँचे।
जंगल के बीच नारियल और सुपारी के वृक्षों से घिरा कर्ली नदी के किनारे बसा हुआ बेहद सुंदर शांत रिज़ॉर्ट था वहाँ हमारा ताजे तोड़े हुए नारियल पानी से स्वागत हुआ।
खूबसूरत शांत वातावरण यात्रा की थकान उतारने में अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ। स्नान आदि से निवृत हो पास ही जंगल में टहलते रहे ।
अगले दिन से नए नए स्थलों के दर्शनो का आनंद लेना था अतः रात्रि भोजन पश्चात आराम करने अपने कॉटिज में आ गए।
तीसरा दिन (21 दिसंबर 2021)
आज सिंधूदुर्ग एवं आसपास के सुंदर तटीय क्षेत्र घूमने निकले। छः व्यक्तियों के लिए महिंद्रा की xylo एक अत्यंत आरामदायक वाहन था। सब से पहले देवबाग पहुँचे वहाँ कर्ली नदी का अरब सागर से मिलने का भव्य दृश्य देख विस्मित रह गया। नदी का साफ़ हरा पानी सागर के नीले रंग के पानी में घुल मिलने से पहले अपना अस्तित्व दर्शा रहा था जो अत्यंत लुभावना दृश्य निर्मित कर रहा था।
हम भी एक बोट में सवारी कर समुद्र सैर का आनंद लेने निकल पड़े ।
जैसे जैसे आगे बढ़े वहाँ एक अजूबा सा दिखायी दिया ,समुद्र की तेज लहरों द्वारा तल की रेत को मथने से सागर के बीच में एक रेतीला टीला सा उभर गया था जिसे स्थानीय लोग सुनामी आयलंड कहते थे ,यहाँ लो टाइड के समय द्वीप बाहर आ जाता है जब की हाई टाइड में दो से तीन फ़ीट पानी में डूबा रहता है।यही छोटी छोटी खाने की गुमटियाँ भी लोगों ने स्थापित कर ली है जहाँ बोट से सैलानी उतर कर खाने पीने का आनंद लेते है,कुछ वॉटर स्पोर्ट जैसे स्कूटर बनाना राइड आदि का आनंद भी ले रहे थे
यहाँ का आनंद ले के आगे सिंधूदुर्ग की तरफ़ प्रस्थान किया ।रास्ते में कुछ ही दूर तर्क़ाली बीच पर थोड़ी देर के लिए रुके साफ़ सुथरा लगभग एक किमी लम्बा ये बीच भी दूसरे अन्य बीचेस की तरह पर्यटकों के इंतज़ार में था,बिल्कुल ख़ाली,
कोस्टल हाइवे पर आगे बढ़ते हुए सिंधूदुर्ग पहुँचे , सिंधुदुर्ग ज़िला भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय ओरोस है। यह ज़िला रत्नागिरि जिले से अलग कर के बनाया गया था। सन २०११ के जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में यह सबसे कम जनसंख्या वाला जिल है।एक अन्य सर्वे के अनुसार यह भारत का सबसे स्वच्छ जिला है।
सिंधु यानि समुद्र और दुर्ग यानि किला से मिल कर बना है और जिसका अर्थ समुद्र का किला है) शिवाजी द्वारा सन 1664 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर निर्मित एक नौसैनिक महत्त्व के किले का नाम है।
शिवाजी महाराज के सैनिक दल में इस किले को बहुत महत्त्व प्राप्त था। किले के क्षेत्र कुरटे बंदरगाह पर ४८ एकर पर फैला है। तटबंदी की लंबाई साधारणत: तीन किलोमीटर है। बुरुज की संख्या ५२ होकर ४५ पथरीले जिने है। इस किले पर शिवाजी महाराज के काल के मीठे पानी के पथरीले कुँए है। उनके नाम दूध कुऑ शक्कर कुँआ ,दही कुँआ एेसे है। इस किले की तटबंदी की दीवार में छत्रपती शिवाजी महाराज ने उस काल में तीस से चालीस शौचालय की निर्मिति की है। इन किलो में शिवाजी महाराज के शंकर के रूप का एक मंदिर है। यह मंदिर इ.स. १६९५ में शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज इन्होंने बनाया था।(wikipidia से साभार)
एरियल चित्र Google images से
हम पहुँचे तब तक दोपहर ढलने को थी ,यहाँ मेरे लिए मुख्य आकर्षण था स्कूबा डाइविंग का,एक एजेन्सी की सहायता से मैंने और पत्नी ने लगभग बीस मिनट तक पंद्रह से बीस फ़ीट समुद्र में जाकर अंदर का नज़ारा देखा,कोरल्स नही के बराबर थे किंतु रंग बिरंगी मछलियों से भरा था ये क्षेत्र,
इस बीच पर सारे ही वॉटर स्पोर्ट्स की सुविधा है अतः यहाँ काफ़ी भीड़ थी ,लोग तरह तरह से आनंद ले रहे थे,खाने पीने के स्टॉल्ज़ भी काफ़ी मात्रा में थे ,
रात होते हम सब पुनः nature plus agro resort लौट आए,थकान काफ़ी थी किंतु उत्साह में कोई कमी नही थी,रात को नाच गाने के साथ ही डिनर में मालवण की प्रसिद्ध बांगडा फ़िश का स्वाद मिला,काफ़ी स्वादिष्ट व्यंजन थी,
अगले दिन सुबह ये रिज़ॉर्ट छोड़कर जाना था अतः सब पैकिंग कर सोने चले गए।
चौथा दिन (22 दिसंबर 2021)
इस खूबसूरत शांत स्वच्छ रिज़ॉर्ट को छोड़कर जाने का मन नही हो रहा था ,सुबह तैयार होकर नाश्ता किया और फ़ोटो सेशन किया
रिज़ॉर्ट का स्टाफ़ बहुत ही सहयोगात्मक रहा,भोजन व्यवस्था उत्तम थी,किसी भी पर्यटक का मन मोह ले ऐसा वातावरण,सभी कुछ उत्तम।
सब से पहले विजयदुर्ग पहुँचे,
सारे ही फ़ोर्ट समुद्र किनारे बनाए गए है मराठों ने जिस से शत्रु को उन तक पहुँचने से आसानी से रोका जा सके,इन किलों की सिर्फ़ दीवारें रह गयी है ,अंदर सब कुछ उध्वस्त हो चुका है,
(फ़ोटो गूगल से )
उसके आगे बेहद खूबसूरत भोगवे बीच,
आरे,वारे बीच ,देवगढ़ व्यू,
कहा रुके ,कहा ना रुके,क्या देखे,क्या छोड़े,इतनी ख़ूबसूरती समुद्र तटों की भारतवर्ष में शायद और कही नही होगी जितनी कोंकण क्षेत्र में है,
(यहाँ यह बताना प्रासंगिक होगा कि देशभर में अत्यंत लोकप्रिय पर्यटन स्थल गोवा भी कोंकण का ही हिस्सा है,मात्र पुर्तगालियों के क़ब्ज़े और बाद में भारत में विलय के उपरांत अलग राज्य का दर्जा मिल गया उस क्षेत्र को,आज भी गोवा में कोंकणी भाषा बहुतायत से बोली जाती है।)
जगह जगह रुकते एक जगह लंच लिया
एक जगह पर फ़ेरी बोट से खाड़ी का हिस्सा पार करना पड़ा,कोंकण के पूरे क्षेत्र में ऐसी दस से अधिक फ़ेरी बोट सेवा चलती है जिनमे कार स्कूटर के अलावा बड़ी बस भी बोट पर चढ़ाई जा सकती है ,इससे पचास किमी सड़क मार्ग से अधिक दूरी बहुत कम समय में पार कर ली जाती है ,
घने जंगल,गहरी घाटियों,ऊँचे नीचे पहाड़ों और बेहद अच्छे रास्ते,इन सब से निकलते समय कैसे निकल रहा था ये महसूस ही नही हो रहा था,
देवगढ़,पावस,रत्नागिरी पार करते हुए हम सायं गणपतिपुळे पहुँच गए।
यहाँ होटल दर्या सारंग में हमारी बुकिंग थी,स्वच्छ होटल,सुव्यवस्थित कमरे,
चेक इन कर के यहाँ के प्रसिद्ध मंदिर दर्शन करने पहुँचे
(400 साल पुराना गणपतिपुळे मंदिर रत्नागिरि जिले में स्थित है। मंदिर आश्चर्यजनक 400 साल पुराना है और यह माना जाता है कि भगवान गणपति खुद यहां प्रकट हुए जिससे स्वयंभू का खिताब दिया गया। मंदिर में स्थित गणेश जी की मूर्ति सफेद रेत से बनी हुई है और सालाना हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो मंदिर में भगवान गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए हर साल भीड़ करते है। गणपति को पश्चिम द्वार्देवता माना जाता है। यह माना जाता है कि स्थानीय लोग जो गणपतिपुळे में रहते हैं उन्हें खुद भगवान आशीर्वाद देकर उनकी देखभाल करते है।)
वह दिन चतुर्थी का दिन था और लग रहा था काफ़ी लम्बी लाइन में लगना पड़ेगा किंतु आश्चर्यजनक रूप से बिल्कुल भी भीड़ नही थी और पाँच मिनट में हम सब अंदर पहुँच गए ,बहुत आराम से दर्शन हुए,लगता था गणेश जी हम पर आशीर्वाद बरसा रहे थे।
दर्शनो पश्चात बाहर समुद्र तट पर जा बैठे,लो टाइड होने के कारण पानी काफ़ी पीछे था,लगभग एक घंटा बिताकर वापस होटल पहुँच कर डिनर लिया।यहाँ एक ही रात रुकना था ,अगला पड़ाव कल गुहाग़र था।
पाँचवा दिन (23 दिसंबर 2021)
सुबह पाँच बजे मैं अकेले ही समुद्र तट जाने का विचार कर के निकला,सारे गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था,एक जगह चाय की टपरी पर चाय मिल गई,तट पर देखा तो समुद्र अपनी उफान पर था,लहरों का शोर सुबह के सन्नाटे में ज़्यादा ज़ोर से सुनाई पड़ रहा था,मंदिर के पट बंद थे तो दर्शनार्थी भी नही थे,सिर्फ़ मैं अकेला और सामने विशालकाय सागर,एक अवर्णनिय आनंद से ओतप्रोत हो गया,लगभग साड़े छः बजे सूर्योदय की लालिमा ने आभास दिया और लौटने का इशारा किया,आगे कभी यही चार छः दिन बिताने का स्वयं से वादा कर होटल लौटा,नाश्ता कर सब ने अपना अपना सामान गाड़ी में भरा और अगले पड़ाव गुहागर के लिए निकल पड़े,
रास्ते में मलगुंड रुके,एक और सुंदर एकांत बीच,
आगे वेलनश्वर मंदिर में दर्शनो की इच्छा व्यक्त की गई और गाड़ी रोक कर उतरे,महिलायें दर्शनों के लिए निकल गई और मुझे एक और सुंदर बीच पर समय बिताने का मौक़ा मिल गया,
बेहद आकर्षक रास्तों से गुज़रते हुए मन ने कहा कि लोग केरल प्रदेश की तारीफ़ करते नही थकते जब की ये क्षेत्र मुझे उससे कही अधिक सुंदर स्वच्छ लगा, विज्ञापन के इस दौर में केरल ने बाज़ी अपने पक्ष में झुका ज़रूर ली थी किंतु बदले में देश भर से पर्यटकों की भीड़ ,साथ में गंदगी,कचरा,महँगे होटेल्ज़ रेस्तराँ भी मिले,
इस मामले में फ़िलहाल कोंकण भीड़ भाड़ से दूर है,रहना खाना पीना काफ़ी सस्ता है,और गंदगी तो नही के बराबर।सिंधूदुर्ग ज़िला सब से स्वच्छ ज़िला है देश में।
अगला पड़ाव हमारे कुलदेवता के मंदिर लक्ष्मी केशव जाना था,रास्ता थोड़ी देर तक ख़राब था आगे हाइवे आने तक।मंदिर की लोकेशन बेहद सुंदर थी चारों तरफ़ पहाड़ी नीचे एक झरना,उससे लगा हुआ शांत सुंदर मंदिर।मन भाव विभोर हो गया,देवता को धन्यवाद दिया एवं आभार प्रकट किया सुंदर जीवन के लिए,आधा घंटा व्यतीत किया,पत्नी ने पूजा आदि की,फिर आगे के लिए निकले
इस बार लगभग दो बजे गुहागर पहुँच गए और चिरप्रतीक्षित क्षण और चिरसंचित इच्छा पूरी करने का समय आ गया था,
वो था समुद्र स्नान का,
ढेर सारे बीच देखे,रुके,किंतु ये एक कार्य रह ही गया था।
होटल अन्नपूर्णा में चेक इन किया और निकल पड़े लहरों से खिलवाड़ करने के लिए,
इंसान की उम्र चाहे जो हो,बच्चे जवान बूढ़े सभी का मन मचल जाता है जब पानी का स्त्रोत दिखाई दे तब,अब तक कई कई बार विभिन्न तटों पर समुद्र की अठखेलियो से रूबरु हो चुके थे किंतु हर बार ऐसा लगा जैसे पहली बार ही जाना हो,
साफ़ सुंदर एकांत बीच वो भी होटल से सौ मीटर की दूरी पर,फिर क्या था,चल पड़ा हमारा क़ाफ़िला।
एक नही दो नही तीन तास वहाँ बिताने के बाद अंधेरा होने को आया और जब सायं लो टाइड के कारण समुद्र की लहरें अपना जोश खोने लगी थी और लगातार पीछे खिसक रही थी तब मजबूरी में हम बाहर निकले,होटल आ कर स्वच्छ पानी से दोबारा स्नान किया,बुरी तरह थकान के बावजूद महिलाओं ने गाँव में ख़रीदी का अपना निश्चय डावांड़ोल नही होने दिया,और निकल गई,मैंने आराम करना उचित समझा,
डिनर पश्चात मुझे सर्दी और बुख़ार का अहसास हुआ,तब अगर कोविड टेस्ट करा सकता तो अवश्य ही पॉज़िटिव रिज़ल्ट आता,तब अहसास हुआ की पूरे कोंकण क्षेत्र में एक्का दुक्का लोग ही मास्क पहने नज़र आए और गाँव में तो सोशल डिस्टन्सिंग शायद ही किसी ने सुन रखा हो ऐसा लगा,आश्चर्यजनक रूप से फिर भी कोंकण उतना ग्रसित नही हुआ जितने देश भर में लोग रोगग्रस्त हुए।
यथेच्छ ख़रीदारी कर के महिलायें काफ़ी प्रसन्न मुद्रा में थी।
अगले दिन पुनःअगला पड़ाव था।
छठा दिन (24 दिसंबर 2021)
गुहागर से नाश्ता कर के निकले दापोली के लिए,एक बार फिर फ़ेरी बोट की सवारी की दाभोल से धोपावे तक के लिए,ये हम लोगों के लिए नया अनुभव है,सारी गाड़ियाँ बोट में लाद कर दूसरे किनारे पहुँचाना।
आगे हर्णे बंदर जेटी का रास्ता बेहद संकरा और भीड़ भाड़ भरा था ।मछुआरों की घनी बस्ती,हर जगह सूखती हुई मछलियाँ,उनकी गंध,सब कुछ असहनीय था,बिना नीचे उतरे वापस आ गए,
रत्नागिरी से निकलते ही चारों तरफ़ यहाँ का प्रसिद्ध हापुस आमों के बाग़ीचे दिख रहे थे,बेहद अच्छी क़िस्म का ये आम अत्यंत महँगे दामों में बिकता है किंतु इसका स्वाद बेहद निराला है,यहाँ रेस्टोरेंट में भी हापुस का ही रस परोसा जाता है,
काजू की वो सारी क़िस्में जो गोवा के नाम से मशहूर है यहाँ भी भरपूर पैदा होती है,अलावा सुपारी के पेड़ बहुतायत में पाए जाते है, ये सब देखते हुए एक और प्रसिद्ध मंदिर कड़या के गणपति पहुँचे।
रत्नागिरी जिले के दापोली तालुका में, जोग नदी के मुहाने पर, प्रसिद्ध स्वर्ण किले के पास अंजारले नामक एक बंदरगाह है। यह दापोली से 20 किमी की दूरी पर स्थित एक सुंदर गांव है। इस अंजारले गांव में एक प्रसिद्ध "काद्यवर्च गणपति" स्थान है। यद्यपि काद्या में गणपति मंदिर की उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं, लेकिन इसके निर्माण की निश्चित तारीख बताने के लिए आज कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। कई किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर 12 वीं शताब्दी का है और माना जाता है कि यह पूरी तरह से लकड़ी का बना हुआ है। प्राकृतिक आपदा के कारण, मंदिर को पास की एक पहाड़ी पर स्थानांतरित कर दिया गया। इस त्रिस्तरीय मंदिर तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन अब कार से मंदिर जाने का रास्ता है।
(Read more at: https://talukadapoli-com.translate.goog/places/aanjarle-kadyavarcha-ganpati-dapoli/?_x_tr_sl=mr&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=sc)
काफ़ी ऊँचाई पर स्थित ये मंदिर एक प्रसिद्ध अंजरली बीच के क़रीब है,
दर्शनो पश्चात पास ही के एक सुंदर से रेस्टोरेंट में लंच लिया और आगे बढ़े।अब महाड तक रास्ता बेहद संकरा था,बहुत सारे छोटे छोटे कोंकणी गाँव से गुज़रते हुए सायं छः बजे महाड पहुँचे,यहाँ कुबेर कामत रेज़िडेन्सी होटल में आज हमारा आवास था,ये अब तक का सब से सुंदर आवास था,और ये मुंबई गोवा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है।आज रात भी गीत संगीत का आनंद लेते हुए बितायी,कल का दिन इस यात्रा का अंतिम दिन था।
सातवाँ दिन (25 दिसंबर 2021)
आज हमें कोंकण के एक अत्यंत ऐतिहासिक स्थान देखने जाना था।
महाराष्ट्र गौरव छत्रपति शिवाजी महाराज का निवास स्थान —- रायगढ़ का क़िला
इसके बारे में इतना अधिक पढ़ा सुना हुआ था की एक उत्कंठा थी ये जगह देखने की,
उसी रोमांच के साथ निकले महाड से दूरी मात्र पच्चीस किमी,फिर भी पहुँचते ग्यारह बज गए थे,
सब से पहले दर्शन हुए जिजामाता की समाधी के….
आधे घंटे बाद समाधी के आगे निकलते ही एक आशंका ने घेर लिया था,25दिसंबर छुट्टी का दिन,पर्यटकों की भीड़,
क़िले तक पहुँचने के दो मार्ग है,एक पैदल जो की बेहद कठिन है विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए,किंतु हमें कोई युवा भी नही दिखे उस मार्ग पर चढ़ते हुए,
दूसरा है रोप वे
जब रोप वे के टिकट लेने गए तो खिड़की पर दो लोग ही खड़े थे,आश्चर्य हुआ क्योंकि बाहर उम्मीद से ज़्यादा भीड़ दिख रही थी,तभी एक वोलंटीयर पास आ के बोला कि अगर टिकट लेना हो तो फ़ॉर्म भरके जल्दी ले लीजिए क्योंकि खिड़की बंद होने वाली है,
आगे का उसका वाक्य सुनकर स्तब्ध रह गए……साड़े चार घंटे की वेटिंग है आप टिकट लेकर कही आराम कीजिए,
सुनकर ही सब के चेहरे उतर गए,दो घंटे क़िला देखने में भी लगने वाले थे,याने रात यही हो जाती।
अंततः निर्णय लिया कि अगली बार ही आएँगे और छुट्टी का दिन छोड़कर आएँगे और महाड में रात्रि विश्राम की जगह रायगढ़ में ही कही रुकेंगे,
वापसी में सोच रहा था कि कैसी विडम्बना है ये,एक तरफ़ तो छत्रपति के नाम का डंका बजा के सत्ताधीश अपनी सत्ता भोग रहे है दूसरी तरफ़ उनके क़िले तक सड़क मार्ग तो दूर रोप वे भी सिर्फ़ छोटी सी ,दो ट्रॉली वाली जिसमें एक समय में सिर्फ़ आठ लोग जा और आ सके, मन क्षुब्ध हो गया था,
ख़ैर,मायूस लौटना ही पड़ा क्योंकि अगले ही दिन सब का अलग अलग वापसी का टिकट बुक था,
रास्ते में लंच लेते हुए अपने अंतिम स्थान मुंबई की यात्रा शुरू की
अत्यंत सुंदर रेस्टौरेंट था,
अब मुंबई गोवा महामार्ग से वापस आना था,छुट्टी का दिन और गोवा आने जाने वालों की बेतहाशा गाड़ियाँ,रास्ता बिल्कुल भी अच्छा नही,ऊबड़ खाबड़ ,कही कही एकांगी मार्ग में परिवर्तित,
जितना सुखद पिछले पाँच दिन का प्रवास रहा उतना ही ख़राब ये तथाकथित राष्ट्रीय राजमार्ग का छः घंटे का सफ़र था,
रात साड़े नौ बजे पनवेल उतर कर अपनी बहन के घर पहुँचे।
इस तरह एक खूबसूरत यात्रा पूर्ण हुई ।
बाक़ी के चार सहयात्री अपने अपने घर की तरफ़ निकल गए थे,हमें अभी और भी सुंदरता निहारनी थी,
अगले ही दिन से हमारी चार दिवस की लवासा यात्रा का आरम्भ होना था।
नौवां दिन (27 दिसंबर 2021)
एक दिन पनवेल रुक कर बहन बहनोई के साथ उनकी इनोवा में पुणे से लगभग 60 किमी दूर स्थित प्राकृतिक रूप से बेहद सुंदर एक नगर है लवासा जहाँ पहुँच कर आप को लगता है की किसी विदेश के यूरोप के शहर में आ गए है।
चारों ओर हरी भरी पहाड़ियों से घिरा बीच में सुंदर स्वच्छ झील ,झील के किनारे सुंदर शॉप्स,खाने के स्टॉल रेस्टौरेंट सब कुछ अदभुत कल्पनातीत,
यहाँ आशियाना नामक एक सॉसायटी ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए सर्व सुविधायुक्त घरों का निर्माण किया हुआ है जिसमें से एक घर की मिल्कियत बहन बहनोई की है,उन्ही के यहाँ हमारा तीन दिन निवास था,
सॉसायटी के क्लब हाउस में सर्वोत्तम सुविधाएँ सभी मेंबेर्स को उपलब्ध थी,चिकित्सा सुविधा सहित,गम्भीर रोग की स्थिति में तुरंत पुणे के अस्पताल में शिफ़्टिंग की व्यवस्था,
याने जो कुछ सुविधा आप सोच सकते हो सब उपलब्ध.
जो उपलब्ध नही वो आम जन के लिए यातायात की सुविधा ?
आपके पास स्वयं का वाहन आवश्यक रूप से होना चाहिए अन्यथा आप लवासा और आसपास के सुंदर स्थान घुम नही पाएँगे,
हमें ये समस्या नही थी ,अतः लगभग सभी सुंदर जगहों की सैर की जिसके लिए अपने बहनोई का हृदय से आभारी रहूँगा,
नीचे कुछ फ़ोटो द्वारा लवासा की सुंदरता दिखाने का प्रयत्न है किंतु कभी पधारे ज़रूर।
शेष फिर…..
बहुत ही सुंदर शब्दों मेंअभिव्यक्ति की गई है।
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे स्वयं यात्रा कर रहे हैं।