Mysterious Manipur & Nagaland
रहस्यमयी मणिपुर व नागालैंड
ये शीर्षक लिखने का विशेष कारण ये की इन दोनों ही प्रदेशों के बारे में भारतीयो की जानकारी अत्यंत न्यून होने के अलावा शायद हीकिसी पर्यटक ने इसे अपनी ड्रीम ट्रिप में शामिल किया हो।कारण यहाँ की विभिन्न परंपरा और संस्कृति जो यहाँ के आदिवासी क़बीलेऔर जनजातीय लोगो ने इतनी तीव्रता और कट्टरता से आत्मसात्
किया हुआ है की बाहरी लोगो का प्रवेश तक प्रतिबंधित है।आज केआधुनिक युग में इसमें शनै शनै परिवर्तन दिखाई देता है किंतु आज भी कबीलों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष इस ओर
आम भारतीय के आगमन में रुकावट डाले हुए है।
22 march 2023
अपनी त्रिपुरा यात्रा की योजना बनाते समय ज्ञात हुआ कि अगरतला से मणिपुर के लिए एक जनशताब्दी चलती है जो वर्तमान में मणिपुर के ख़ोंगसांग तक जाती है ( एक साल में ये इम्फ़ाल तक पहुँचने की पूरी संभावना दिखाती है)
हमने इसे अपनी यात्रा में शामिल कर लिया और इसी ट्रेन के विस्टाडोम का टिकट बुक कर लिया।
सुबह के छः बजे इसी कोच में बैठ के रवाना होना था।चूँकि अगरतला में कैब या टैक्सी नहीं चलती अतः दो ऑटो रिक्शा रात ही में बुककर ली थी।
( अगर सुबह चार बजे वो नहीं आये तो….आशंकित मन से सोये पर आशंका निराधार साबित हुई) स्टेशन पहुँचे देखा एक भीशॉप खुली नहीं थी ।चाय भी उपलब्ध नहीं थी।सोचा विस्टाडोम में सुविधा होगी किंतु व्यर्थ।ये कोच नाम मात्र के लिए लगाया है जिसकेकोई सुविधा उपलब्ध नहीं है ।
यात्रा शुरू हुई और जैसा की पूर्व में भी लिख चुका हूँ की रास्ते का सौदर्य ही इस क्षेत्र की विशेषता है ।चहूँ ओर हरे भरे पर्वत उनके बीचसे बहती हुई नदियाँ और झरने सभी को मंत्रमुग्ध किए हुए थे।
एक के बाद एक स्टेशन पार करते हुए हम त्रिपुरा और आसाम से मणिपुर की तरफ़ बढ़ रहे थे ।साथ ही उम्मीद थी की कही चाय यानाश्ता मिलेगा किंतु किसी भी स्टेशन पर कुछ भी उपलब्ध नहीं था ।भारत के अन्य भाग की तरह अभी रेलवे स्टेशन बाज़ार की संस्कृतियहाँ तक नहीं पहुँची थी ।सभी घुमक्कड़ों को सुझाव है कि गुवाहाटी के बाद खानपान की व्यवस्था स्वयं कर के पहुँचे ।
पेट की समस्या छोड़ दी जाये तो आँखो के द्वारा मन मस्तिष्क को भरपूर भोजन उपलब्ध था।क्या देखें….कितना देखे…कितना छोड़े ? भारतीय रेलवे की परियोजनाओ की भूरी भूरी प्रशंसा किए बिना आप रह नहीं सकेंगे।ऊँचे ऊँचे पर्वतों पर गोल गोल घूमते या टनल केअंदर से पर्वतों को एक के बाद एक पार करते हुए हम लगभग सात घंटे की
यात्रा के बाद मणिपुर के ( फ़िलहाल के )पहले स्टेशन ख़ोंगसांग पहुँचे।चौतरफ़ा पहाड़ो से घिरा हुआ छोटा सा स्टेशन मात्र दो प्लेटफार्म।बाहर कोई गाँव या बस्ती नहीं ।एक भी दुकान नहीं ।( भविष्य में जब लाइन इम्फ़ाल तक पहुँचेगी तब शायद कोई ट्रेन इस स्टेशन पे रुकेगी भी नहीं )
सारी ट्रेन यही ख़ाली हो गई और आधे से अधिक यात्रियों को अब ILP ( inner line permit) बनवाना था
जिसके बिना मणिपुर प्रवेश प्रतिबंधित था।बाहर मात्र दो पुलिस मैन इस काम के लिए तैनात थे जो की बिल्कुल भी अनुचित था।लगभग सौ सवा सौ लोग लाइन में खड़े थे।(आधार कार्ड की फ़ोटोकॉपी और दो पासपोर्ट साइज के फोटो साथ रखे)
लगभग घंटे भर की मशक़्क़त के साथ साथ शेयरिंग टैक्सी वालों से भी बातचीत जारी थी।वो उन्हीं से बात कर रहे थे जिनके परमिटबनते जा रहे थे।अंततः हमे भी एक टैक्सी महिंद्रा बोलेरो में जगह मिल गई।रू.४५०/- प्रति व्यक्ति।कुल ग्यारह व्यक्ति ( ये ना सोचे कैसेबैठे) आप चाहे की पाँच हज़ार खर्च करके पूरी टैक्सी की जाये तो वो भी संभव नहीं होगा क्योंकि सभी यात्रियों को इम्फ़ाल पहुँचाना भी इन्ही थोडे से कैब वालों की ज़िम्मेदारी है।
90 किमी का फ़ासला तय करना था किंतु पहाड़ी रास्ता बारिश कीचड़ और नहीं के बराबर डामर रोड।सच में ईश्वर को याद करते रहे और साड़े तीन घंटे की ऊबड़ खाबड़ यात्रा के बाद इम्फ़ाल शहर(?)पहुँचे ।भाग्य से हमारे होटल के मालिक हमे ड्रॉप पॉइंट पर लेने पहुँचगये थे तो शाम सात बजे होटल मणिपुर हाउस में चेक इन किया (श्री मानसिंह 8585902424)यहाँ चाय नाश्ता भोजन आदि की भरपूर सुविधा थी।अब नहाना और रात्रि भोजन ही एकमात्र कार्य था।तत्पश्चात नींद।
23 march 2023
आज का दिन इम्फ़ाल और आसपास के लिये सुरक्षित था।
सुबह भरपूर नाश्ता कर के होटल द्वारा प्रदत्त कैब ( दिन भर के लिये रू 5000/-) में निकल पड़े।
इम्फाल भारत के मणिपुर राज्य की राजधानी है। इस ऐतिहासिक नगर के केन्द्र में भूतपूर्व मणिपुर
राज्य की गद्दी, कंगला महल, के खण्डहर उपस्थित हैं। इम्फाल नगर इम्फाल पश्चिम ज़िले और इम्फाल पूर्व ज़िले दोनों में विस्तारित है, और शहर की अधिकांश आबादी इसके पश्चिमी भाग में निवास करती है।कुल आबादी लगभग ढाई लाख है और ये 2600 फीट की ऊँचाई पर बसा खूबसूरत नगर हैजिसको चारों ओर से
पहाड़ियों ने घेर रखा है।
पहला पड़ाव था INA museum of moirang
क़रीब आधे घंटे की दूरी पर मोइरांग बाज़ार है जहां बनी एक इमारत में कभी आज़ाद हिंद फ़ौज का मुख्यालय हुआ करता था।मुख्यालय के परिसर को अब एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहां प्रवेश करते ही सुभाष चंद्र बोस की एक ऊंची प्रतिमानज़र आती है। मोइरांग के इस संग्रहालय में द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानियों की
ओर से शामिल आज़ाद हिंद फ़ौज से जुड़े अवशेष रखेगए हैं। इस छोटे से अहाते में आप युद्ध में इस्तेमाल हुए
हथियार भी देख सकते हैं। साथ ही कुछ नक़्शे भी हैं जिनसे आज़ाद हिंद फ़ौज के यात्रा मार्ग की जानकारी मिलती है। इसके अलावा मणिपुरी राजाओं और साहित्यकारों के चित्र भी इस संग्रहालय में संजोए गए हैं।
यहाँ पहुँच के देशभक्ति का अहसास जागृत होने लगता है ।आज़ाद हिन्द फ़ौज ने जापानियो की मदद से अंग्रेजों को हराया था।लगभग एक डेढ़ घंटा यहाँ बिताया और अगले मुख्य स्थान लोकटक लेक के लिए रवाना हुए।
भारत देश कई विविधताओं से भरा हुआ और अपने आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए है। भारत में कई ऐसी
जगहें भी मौजूद हैं जो आश्चर्य से भरी हुई हैं ऐसी ही एक आश्चर्य से भरी जगह है मणिपुर में स्थित लोकटक झील।
ये झील देखने में खूबसूरत होने के साथ एक अद्भुत विशेषता से भरी हुई है। लोकटक झील एक ऐसी झील है जिसे फ्लोटिंग झील भी कहा जाता है क्योंकि ये विश्व की एकलौती ऐसी झील है जो तैरती हुई दिखाई देती है। यह
अपनी सतह पर तैरते हुए वनस्पति और मिट्टी से बने द्वीपों के लिये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, जिन्हें "कुंदी" कहा जाता है। झील का कुल क्षेत्रफल लगभग 280 वर्ग किमी है। झील पर सबसे बड़ा तैरता द्वीप "केयबुललामजाओ" कहलाता है और इसका क्षेत्रफल 40 वर्ग किमी है।
ये वनस्पति, मिट्टी और अन्य कार्बनिक पदार्थों का एक द्रव्यमान है जो समय के साथ जम जाते हैं
जो झील में स्वतंत्र रूप से तैरने वाले भूस्वामी से मिलते जुलते हैं। इस फ्लूमिडिस के कारण दुनिया की एकमात्र
तैरती हुई झील है। विभिन्न प्रकार के जलीय पौधे इनसे जुड़कर तैरते हुए मज़बूत ज़मीन समान हो जाते है जिन पर यहाँ के
लोग घर बना कर रहते है।इन हिलते डुलते झूलते घरों को यहाँ किराए पर भी दिया जाता है (Rs.2000/- to 3000/-)
इसी झील पर बोटिंग की सुविधा भी है जो यहाँ के तैरते सबसे बड़े द्वीप तक ले जाती है।
लोकटक झील में फूमदी का सबसे बड़ा घेरा 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का है। इस घेरे के रूप में निर्मित इस
भूभाग को भारत सरकारने ‘केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय पार्क’ का नाम व दर्जा दिया है। केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय पार्क’ दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीयपार्क भी है। दुर्भाग्य से जिस दिन हम पहुँचे उस समय पार्क पशुओं की गणना के उद्देश्य से बंद था।हम मायूस लौटे और जानते थे फिर यहाँ आना नहीं हो सकेगा।
एक पहाड़ी पर बने हुए व्यू पॉइंट से चारों तरफ़ का 360 व्यू दिखाई देता है जहां से पूरे लेक का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है ।एक रेस्टोरेंट भी बना है और कुछ काटेजस भी है ।मणिपुर आने का मुख्य उद्देश्य ये झील ही था क्योंकि इसे फोटो में ही देखा था और कभी आऊँगा ये सोचा भी नहीं था।
लगभग तीन घंटे बिताने के बाद एक गाँव में लंच हेतु रुके ।यहाँ रोटी मिलना अत्यंत मुश्किल है और चावल दाल पापड़ ही खाये जाते है ।
वापसी में ही देखने को रुके रास्ते में G20 के सदस्यों के लिए मणिपुर की सांस्कृतिक विरासत
दर्शाने हेतु एक म्यूजियम बनाया है जिसमे यहाँ की सारी जनजातियों के घरों के मॉडल रखे है
मणिपुर में और भी बहुत सारी जगह है देखने की किंतु इसके लिये कम से कम चार पाँच दिन का समय चाहिये होता है जबकि कल सुबह हम नागालैंड की राजधानी कोहिमा के लिए निकलने वाले है।
24 march 2023
सुबह सुबह सात बजे ।इम्फ़ाल से कोहिमा लगभग 135 किमी दूर है और टाटा विंगर गाड़िया खूब चलती है।हम लोगो ने एक विंगर ड्राइवर से रात ही बात कर ली थी और वो हम चारों को होटल से पिक करने आने वाला था।होटल मणिपुर हाउस का भुगतान कर हम तैयार थे।हमारा होटल एक मध्यमवर्गीय लोगो के लिये उत्तम स्थान है
जिसमे सुविधाए सारी है किंतु लक्ज़री की उम्मीद ना करे(Rs.1300/-)
नियत समय हमे लेने गाड़ी आ गई और चारो निकल पड़े।Rs 600/- per head)अब बाक़ी 8 सवारी वो बस स्टैंड से बिठाने वाला था।पता नहीं क्या हो रहा था आधे पौने घंटे बाद भी कोई सवारी नहीं मिल रही थी ।अंततः ड्राइवर हमसे बोला की आठ की बजाए चार का किराया आप दे दो तो सिर्फ़ आपको ले के निकल जाएँगे।हमे देर भी हो रही थी और पेशोपश में थे ।हमने बोला की Rs 4000/- में हम तैयार है ।अंततः हमारी बात मान के बारह सीटर में चार को ले के चल पड़े एक और राजधानी शहर कोहिमा के लिये।लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद मैदानी सफ़र समाप्त
हुआ और पहाड़ो की सैर शुरू हो गई जो की मुझे बेहद पसंद है।अभी नागालैंड ILP के लिए भी रुकना पड़ना था।दो घंटे बाद मणिपुर नागालैंड सीमा पर एक जगह रुके जहां चाय आदि उपलब्ध थी।आशंका थी कि सीमा पर देर लगेगी पर पुलिस ने हमारा मणिपुर का ILP कंप्यूटर पर चेक किया और दस मिनट में मुक्ति मिल गई।आश्चर्य !
आगे बढ़ते गए और रास्ता अच्छा नहीं था ऊबड़खाबड़ सड़क पर अभी 70 किमी और जाना था किंतु आसपास
की सुंदर दृश्य मन मोह रहे थे।जैसे जैसे कोहिमा पास आ रहा था सड़क भी अच्छी हो रही थी।घुमावदार गोल गोल रास्ते पहाड़ के आभूषण की तरह होते है ।कोहिमा पहुँचते ही शहर की गहमागहमी शुरू हो गई थी।शिमला मनाली नैनीताल की तरह ऊँचे नीचे बसा हुआ एक सुन्दर नगर हमारी कल्पना के बिल्कुल ही विपरीत था।अगरतला और इम्फ़ाल मैदानी शहर थे जब की ये लगभग 6000 फुट की ऊँचाई पर बसा बेहद खूबसूरत शहर था ।बरबस शिलांग की याद हो आयी।आमने सामने के दो पहाड़ो पर बसा ये रमणीक स्थान था ।तापमान काफ़ी कम था और हमे ठंड का एहसास होने लगा था।शहर के मध्य में स्थित हमारा होटल Aroura भी मध्यमवर्ग के लिए आदर्श था।छोटे स्वच्छ कमरे
(Rs 1000-1200) और नीचे बेहद खूबसूरत रेस्टोरेंट जिसमे भोजन भी अत्यंत स्वादिष्ट ।
आज दिन भर आराम का था।नीचे भरा पूरा मार्केट व्यवस्थित ट्रैफिक।इस शहर के बारे में इतनी विपरीत
बातें सुन रखी थी …. सारी की सारी ग़लत निकली थी।बेहद विनम्र लोग सुंदर युवक युवतियाँ मनमोहक
वातावरण ।
दिन भर आराम कर शाम शहर घूमने पैदल ही निकल पड़े।
आगे हमारे चौकने की बारी थी,सारा शहर लगभग सात बजे ही बंद हो चुका था ।सड़क पर गाड़िया लोग ग़ायब।
दुकाने बंद ।अब समझ में आया कि यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त मेरे शहर की अपेक्षा जल्दी होते है ,सामान्य
कामकाज भी यहाँ सुबह आठ बजे से शाम चार बजे तक ही होते है,साड़े चार पाँच के आसपास अंधेरा हो जाता है और
लोग अपने अपने घर निकल जाते है,चूँकि टूरिस्ट्स की फ़िलहाल भरमार नहीं है तो night life शून्य ही है।
अब थोड़े से टूरिस्ट आने लगे है तो रेस्टोरेंट में भोजन आदि उपलब्ध हो जाता है।
फुटपाथ मार्केट चालू था जिस में चाट आदि के अलावा एक ठेले पर काँच के बक्से में जीवित मेंढक बिकने को रखे थे।एक अन्य ठेले पर जीवित worms बिक रहे थे।हमने हमारे शहर की दुकानों पर लटके हुए कटे बकरे और मुर्ग़े काफ़ी देखे है,पर यहाँ के खानपान में उक्त प्राणियो का समावेश था,एक जगह तले हुए मेंढक के पकौड़े भी देखे,हम लोग अधिक देर तक देख नहीं सके ।साउथ ईस्ट एशिया के अधिकांश देशों (जापान कोरिया मलेशिया चाइना)में इस तरह के खाद्य पदार्थ होते है ये देखा सुना था किंतु भारत में भी है ये पता नहीं था,हालाँकि हमारे रेस्टोरेंट के मेनू कार्ड
में इस तरह की किसी डिश का समावेश नहीं था।
ऐसे भ्रमण में अलग अलग स्थानों की खाद्य संस्कृति की जानकारी भी प्राप्त होती है।
घूमते हुए एक और बहुत अच्छी बात जो हमने नोट की वो ये कि रात्रि के सन्नाटे के बावजूद लड़कियाँ इत्मीनान
से बिना किसी डर या ख़ौफ़ के अकेली घूमती दिखाई दे रही थी।इतनी सुरक्षित हमारे प्रदेशों में आज भी नहीं है ।
होटल पहुँच कर रिसेप्शन से संदेश मिला की शीघ्र भोजन कर ले अन्यथा रेस्टोरेंट बंद हो जाएगा।भोजन कर सोने चले गए।
25 march 2023
अच्छा सा नाश्ता कर के एक टैक्सी कर हम किसमा की तरफ़ चल पड़े जो कोहिमा से 12 किमी दूर स्थित है।
कोहिमा के बाहरी इलाके में स्थित एक गांव, किसामा में नागा हेरिटेज विलेज, नागा लोगों की संस्कृति और
परंपराओं को संरक्षित करताहै। किसामा नाम ही दो नागा गांवों का एक समामेलन है, अर्थात् किग्वेमा (केआई) और फेसामा (एसए) और एमए (गांव)।
सरकार ने पारंपरिक नागा गांवों और आदिवासी आजीविका और मूल्यों की नकल करने के लिए गांव का
निर्माण किया। होर्नबिल उत्सवके समय दिसंबर में गांव को जनता के लिए खोल दिया गया है । गांव नागा
संस्कृति और परंपराओं के एक ओपन-एयर संग्रहालय कीतरह है।
यहाँ संग्रहालय में नागालैंड की सारी १७ जनजातियों द्वारा उनके रहने के घरों का निर्माण किया गया है।
उनकी वास्तु कला उनकी शिल्पकला आदि का समावेश है जिस से पर्यटकों को एक ही जगह पर
अधिकांश जानकारी प्राप्त हो सके ।
हमारा अगला पड़ाव था….
कोहिमा युद्ध कब्रिस्तान,
यह, शायद, कोहिमा में एक ऐसी जगह है जिसे आप बिल्कुल भी मिस नहीं करना चाहेंगे। यह खूबसूरत स्थल
उन 10,000 मित्र सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी आक्रमण के दौरान
अपनी जान गंवाई थी।
कब्रिस्तान अच्छी तरह से हरे-भरे, कटे हुए लॉन और अच्छी तरह से तैयार फूलों के साथ रखा गया है।
कब्रिस्तान की दीवार पर शिलालेख है। घर जाओ तो उनको हमारी बताना और कहना कि उनके कल के लिए हमने अपना आज कुर्बान कर दिया.....?
कब्रिस्तान के 18 भूखंडों पर कोहिमा की लड़ाई में शहीद हुए सैनिकों की याद में 1421 शिलाएं बनी हुई हैं। ये सैनिक ब्रिटेन, जापान, पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका और बर्मा के थे।
ये दो मुख्य दर्शनीय स्थलों के अलावा भी यहाँ बहुत सारे स्थल है जिनके लिए एक हफ़्ता भी कम पड़ जाये।हमारा मुख्य लक्ष चार उत्तरपूर्वी राज्यो की राजधानियों का भ्रमण ही था।कल का दिन दीमापुर के लिये सुरक्षित था।
26 march 2023
सुबह ग्यारह बजे तक चेक आउट करना था तो आराम से उठ कर सामान पैकिंग शुरू की,मन में एक उदासी थी कि अब कभी दोबारा आने का योग बनेगा नहीं।जीवन भर उत्तरपूर्व के प्रति जो जुगुप्सा थी,देखने घूमने का जो चाव और उत्साह था एक ललक थी वो उम्र के चौसठवे वर्ष बाद पूरी हो पायी थी ।
एकमात्र मिज़ोरम की राजधानी आइज़ॉल इस यात्रा में छूट गया था देखते है आगे।युवावस्था में लक्ष था संपूर्ण भारत भ्रमण का जो लगभग पूरा हो चला था ।इस एकमात्र राजधानी को छोड़ कर अन्य सभी उत्तरपूर्व प्रदेशों की राजधानियों का भ्रमण पूर्ण कर चुका था….कुछ ना कुछ जीवन में छूट ही जाता है पर फिर ये विचार आता है की कितने लोग है जो सिर्फ़ सोच ही पाते है ।मैं भाग्यशाली रहा की अधिकांशभाग देख लिया ।
लंच लिया और टैक्सी से दीमापुर की ओर प्रस्थान किया।
दीमापुर नागालैंड का एकलौता ट्रेन स्टेशन है जहां से देश के बहुत सारे शहर जुड़े हुए है।
हमने यहा रेटायरिंग रूम बुक कर लिया था जो वास्तव में अत्यंत न्यून किराए में उपलब्ध है।
कल सुबह गुवाहाटी प्रस्थान है।
वहा तीन दिनों में कामाख्या दर्शन और ब्रह्मपुत्र क्रूज़ का आनंद ले कर वापसी यात्रा भोपाल। पूर्व के मेरे यात्रा विवरणों में आसाम का विवरण कर चुका हूँ अतः पुनः लिखना अनावश्यक लग रहा है।
आशा है आपको वर्णन अच्छा लगा होगा
लाइक और कॉमेंट अवश्य करे।
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