CONFLUENCE OF LOVE & ARCHITECTURE -TAJ MAHAL

 वाह ताज – खूबसूरती और प्रेम का अनोखा संगम

विगत 30 वर्षो के वैवाहिक जीवन में भारत का लगभग हर कोना सपरिवार घूम चूका था. कश्मीर से कन्याकुमारी एवं पोरबंदर से पोर्ट ब्लेयर.पत्नी बच्चो के साथ द्विवार्षिक भ्रमण हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चूका था. किन्तु किसी न किसी कारणवश हम ताजमहल देखने नही जा सके. कभी ब्रेक जर्नी अवॉयड की तो कभी रिजर्वेशन नही मिला. कभी सोचा पास ही तो है देख आयेंगे किसी दिन.

हालाँकि बच्चे अलग अलग जा के देख चुके थे और मुझे भी जीवन में 2 बार जाने का अवसर मिल चुका था किन्तु पत्नी अब तक ताज दर्शन से वंचित ही रही थी और गाहे बगाहे मौका देखकर ताना मारने से नही चूकती थी.मैं भी बस मुस्कुरा के रह जाता था. इस वर्ष सोचा की ये शिकायत दूर कर दू और पत्नी के 50 वे जन्म दिन पर उसे ताज दिखा लाऊ (बना तो हम सकते नही)

भोपाल एक्सप्रेस से टिकट कटाया और सुबह सुबह ताज नगरी पहुच गये.
बॉन फायर नाम के होटल में बुकिंग थी वहा चेक इन किया चाय नाश्ते के बाद ऑटो वाले से पूछा तो उसने पचास रुपये कहा जबकि पैदल आधा किमी भी नही था. 20 में तय करके पहुचे ताज के पूर्वी द्वार पर. टिकट रु.40 मात्र जबकि विदेशी रु.1000. बैटरी कार्ट से लगभग 1 किमी दूर मुख्य द्वार पहुचे. पत्नी के उत्साह का और छोर नही था. पहली बार ताज.

खैर औपचारिकता (परिचय पत्र व् पते का प्रूफ) पूरी कर अन्दर गये. मुझे याद था की पहले बड़ा सा सामने वाला मुख्य दरवाजा बंद हुआ करता था व् साइड के छोटे से दरवाजे से प्रवेश होता था एवं अचानक ताज की भव्य इमारत देख के आँखे फटी रह जाती थी. किन्तु इस बार सामने का भव्य द्वार खुला मिला जिससे दूर से अधूरे ताज के दीदार शुरू हो गये थे. पत्नी के लिए पहला ही अवसर था उसने शुभ्र विशाल इमारत देखी और जैसी की उम्मीद थी स्तब्ध रह गयी. मुझे भी 15 वर्ष बाद आने का अवसर मिला था और बहुत सारे आसपास परिवर्तन भी दिखे किन्तु ताज का रूप वैसा ही था. 

अप्रतिम, अद्भुत, अविस्मरणीय

शब्द कम थे सौन्दर्य अफाट. बस सामने की दायी मीनार पर रखरखाव का काम चल रहा था वो मखमल पे टाट का पैबंद लग रहा था किन्तु अत्यंत आवश्यक है अब तो. वातावरण अत्यंत प्रदूषित हो चला है. गाडियों का धुँआ, मथुरा रिफायनरी से आता विषैला धुँआ. इन सबसे ताज की रक्षा आवश्यक है.

आगे बढे. जूतों पर ऊपर से कवर लगा के जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे सफ़ेद संगमरमर की चकाचौंध से आँखे बंद हो रही थी. फर्श अभी ठंडा ही था और पीछे यमुना की तरफ छाव थी तो वही बैठे रहे काफी देर.

ऐसा कहा जाता है की यमुना के दूसरी और एक काला ताज बनाने की योजना भी थी जिसे एक पुल के द्वारा आपस में जोड़ा जाना था. ये योजना अर्थाभाव एवं शाहजहाँ को कैद कर लिए जाने के कारण पूर्ण ना हो सकी,किन्तु यदि ऐसा हो पाता तो इसका विलक्षण सौन्दर्य संसार को अभिभूत कर जाता.
अब तक विभिन्न दिशा से फोटो लिए जा रहे थे . अन्दर बाहर दो दो बार जाके भी पत्नी संतुष्ट नही हो पा रही थी . कही कुछ देखने का रह ना जाए. कुछ छूट ना जाए. लगभग 3 घंटे बिताये और इच्छा ना होते हुए भी वापस बाहर आये. बाहर के एक रेस्तरा में भोजन किया और होटल पहुच के थकान दूर की.

सायं आगरे की मशहूर चाट और कचोरियो का स्वाद ताज गंज में लिया

अगले दिन लाल किला देखने का प्रोग्राम बनाया था…

लाल किला

सुबह सुबह साड़े पांच बजे नींद खुल गयी एवं पत्नी का मूड एक बार फिर ताज देखने का हुआ…हलकी ठण्ड में पैदल ही पहुच गये और आश्चर्यचकित हो के देखते क्या है की सिर्फ हम गिने चुने दो चार भारतीय थे और लगभग पांच सात सौ की संख्या में विदेशी पर्यटक…हर देश के …कही से इंग्लिश भाषा सुनाई दे रही थी तो कही कोई गाइड स्पेनिश या जर्मन भाषा में इन पर्यटकों से बात कर रहा था…पता चला की लगभग सभी विदेशी सुबह ही यहाँ आते है भारतीय भीड़ से दूर और ये सुझाव उन्हें गाइड और होटल वाले देते है…पिछले दिन भी विदेशी पर्यटक काफी थे पर आज ऐसा लगा की हम लोग विदेश घुमने आये है …इतने अधिक विदेशी एक साथ एक ही जगह पे भारत में कही नही देखने को मिलते..

खैर..सूर्योदय के थोडा पहले अन्दर पहुचे…हलके से उजाले में ताज का दूसरा ही रूप नज़र आया…शांत स्निग्ध…उसके बाद…धीरे धीरे सूर्योदय के साथ सुनहरी किरणे ताज के गुम्बज पे पड़ना शुरू हुई और बस मुह खुला का खुला रह गया …सभी आगंतुक स्तब्ध और विस्मय से निहार रहे थे …नीरव शांतता…कोई शोरगुल नही…और अब पता चला वास्तव में सुबह ताज देखने के पीछे का रहस्य…क्यों विदेशी सुबह आते है ?? आप भी कभी जाओ तो सुबह 6 बजे ही पहुच जाइये.. अद्भुत सौन्दर्य ताज का सुबह और भी प्रिय होता है…

उस दिन पूर्णिमा का अगला दिन था और रात को चाँद की रौशनी में ताज का सौन्दर्य और भी बढ़ जाता है ऐसा सुन रखा था तो रात की बुकिंग कराने पिछले दिन गये थे तब तक बुकिंग खत्म हो चुकी थी इसलिए पिछली रात मौक़ा चुक गये थे पर वो मलाल थोडा कम हो गया जब सुबह ताज को देखा.

9 बजे होटल पहुचे और नहा के रूम से चेक आउट किया…शाम 4 बजे की ट्रेन थी…सामान ले के लाल किला पहुचे…वहा पर सामान रखने की अच्छी सुविधा है ये पता कर लिया था,क्लॉक रूम में सामान जमा किया और टिकट आदि ले के अन्दर पहुचे..

ये किला किसने बनवाया इसके बारे में विभिन्न कहानिया है किन्तु एक बात पक्की है की मुग़लो ने इसको राजपूत शासको से हथिया लिया था और इसको स्वयं के रहवास के रूप में विकसित किया,दिल्ली के लाल किले के मुकाबले ये बहुत बड़ा है ,लाल पत्थरो से बनी यह एक अद्भुत इमारत है…

एक के बाद एक किले के कक्ष देखते हुए दीवान ए ख़ास फिर दीवान ए आम पहुचे…काफी बड़ा किला था थकान स्वाभाविक थी…किले की प्राचीर से ताज और यमुना का नज़ारा सुन्दर था..1558 में अकबर ने आगरा में राजधानी बसायी तब तक बाबर हुमायु आदि रह चुके थे इसमें…
इसकी देखभाल भी उचित ढंग से हो रही है देखके अच्छा लगा..अपने साथ पानी ले जाए क्योकि अन्दर सिर्फ निकास द्वार के पास ही पीने के पानी की व्यवस्था है..

क्लॉक रूम से सामान लिया और एक इ रिक्शा से स्टेशन के लिए निकले..
रास्ते में ब्रजवासी के यहाँ स्वादिष्ट भोजन किया और आगरे का प्रसिद्द पेठा ख़रीदा और शाम को 4 बजे ट्रेन के लिए स्टेशन पहुचे…
इस तरह ये बहुप्रतीक्षित यात्रा पूर्ण हुई

हमारा अगला पड़ाव पूरी तरह भारतीय रेल के भरोसे था…छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वेटिंग टिकट था और कन्फर्मेशन ट्रेन छूटने से 2 घंटे पहले ही पता चलना था…लाल किला इसी उहापोह में घुमे कि शाम को अमृतसर जाना है या वापस भोपाल…
अमृतसर और वाघा बॉर्डर की यात्रा का विवरण अगली क़िस्त में पढ़े..

संजीव जोशी

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