ASSAM & ARUNACHAL

 अरुणाचल प्रदेश और आसाम 

कोई कितना भी दावा कर ले सम्पूर्ण भारत भ्रमण का किन्तु पूर्वोत्तर भारत भी भारत का हिस्सा है ये भूल जाते है अक्सर हम और दार्जिलिंग गंगटोक घूम के पूर्व क्षेत्र भ्रमण का भ्रम पाल लेते है जब कि असल में पूर्वोत्तर की शुरुआत न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के बाद शुरू होती है।

पिछले 35 वर्षो के दौरान लगभग हर क्षेत्र दो दो कुछ तीन बार घूम चुकने के बावजूद एक कसक मन में थी ही कि कब आसाम मेघालय अरुणाचल नागालैंड आदि जाने का मौका मिलेगा?
दो बार प्रयास भी किया पर पहली बार प्राकृतिक आपदा ने तो दूसरी बार राजनीतिक गतिरोध ने प्लान चौपट कर दिया था।
तीसरी बार संयोग यु हुआ कि साले साहब बीएसएनएल में उच्च पद पर पदोन्नत होकर नागालैंड में नियुक्त किये गये एवं उनकी इस नियुक्ति का लाभ हमे यह मिला कि हम उनके मेहमान बनने का स्वप्न देखने लगे। फिर भी एक और बार प्लान निरस्त करना ही पड़ गया था।

ट्रैन से माँ गंगा का दर्शन : पहला /दूसरा दिन (रवि/सोम)

पर अंततः वो शुभ दिन आ ही गया और एलटीटी कामख्या ट्रेन में इटारसी से 35 घंटे का सफ़र शुरू हुआ। पहली ही बार पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के रास्ते रेल का सफ़र था और बहुत कुछ नकारात्मक बाते सुन रखी थी इस क्षेत्र के बारे में पर बाद में सभी गलत साबित हुई। दुसरे दिन सुबह मिर्ज़ापुर मुगलसराय के बाद पटना के दानापुर और पाटलिपुत्र स्टेशन तक निर्बाध सफ़र हुआ। पाटलिपुत्र नवनिर्मित स्टेशन था और इसके आगे गंगा नदी पर लगभग 7 किमी लम्बा रेल कम सड़क पुल से ट्रेन निकली और एसी कोच की बंद खिड़की से देखने में दृष्टी बाधित हो रही थी तो दरवाजे पर खड़े होकर विस्तृत गंगा का विहंगम दृश्य देखा (हालाँकि ये नही करना चाहिए किसी को भी,खतरनाक है ये)।पानी से भरी गंगा उसमे तैरती नावे देखने में इतने मशगूल हो गये की फोटो लेने का भान नही रहा। आगे सोनपुर में फिर गंगा की सहायक नदी से भी गुजरे और शायद ये गंगा का ही प्रताप होगा की मन इतना प्रसन्न था की लिखा नही जा सकता।

पटना के बाद इस उच्च श्रेणी की गाडी के साथ दोयम दर्जे की तरह वर्ताव शुरू हुआ,सवारी गाडी तक के लिए इसे रोकने का सिलसिला जो शुरू हुआ उसकी परिणिति 3 घंटे की देरी से कामख्या पहुचने में हुई पर इसमें लगभग सभी यात्री खुश ही थे क्योकि सही समय सुबह 4.25 का था जो की असुविधाजनक था और 7.30 तक सबकी नींद पूरी हो चुकी थी।

यहां से कहाँ जाये: तीसरा दिन (मंगल)
दोपहर 2 बजे कामख्या से दीमापुर (नागालैंड) पहुचने का रिजर्वेशन था किन्तु कुछ तो अप्रत्याशित होना ही था पिछली दो बार की तरह ।
तो इस बार महिला चुनाव आरक्षण के मुद्दे पर नागालैंड में अनिश्चित कालीन हड़ताल और बंद का आव्हान था अतः नागालैंड यात्रा रद्द करना पड़ी ,उत्साह पे पानी फिर गया था और कुछ सूझ नही रहा था कि अब क्या किया जाए? तभी एक विचार आया की क्यों न रात्रि की ट्रेन से ईटानगर जाया जाए।इस तरह अरुणाचल प्रदेश जाने का लाभ लिया जाए। गुवाहाटी से ईटानगर के लिए 2 वर्ष पूर्व ही रेल सेवा की शुरुआत हुई है और ट्रेन नहारलागुन तक जाती है जो ईटानगर का ही हिस्सा है।
(यहाँ ये बताना आवश्यक है कि अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश हेतु इनर लाइन परमिट लेना सभी के लिए अनिवार्य है और ये ऑनलाइन भी मिलता है तथा स्टेशन पे उतर के प्लेटफार्म पर भी इसे जारी करने की व्यवस्था है,आपको अपना परिचय पत्र आधार पैन कार्ड और 2 फोटो साथ रखना चाहिए।
साले साहब के एक परिचित की सहायता से हमे परमिट मिलने में कोई परेशानी नही आयी।)
अब गौहाटी में पूरा दिन गुजारना था तो स्नान आदि से निवृत हो के नाश्ता किया और विशाल ब्रह्मपुत्र के किनारे पहुच गये। पहली बार देखा और स्तब्ध रह गये,अब तक गंगा ही हमारे लिए सबसे बड़ी नदी थी किन्तु ये उससे भी बड़ी मालूम पड़ी जो की सही भी था गंगा की कुल लम्बाई 2525 किमी है जबकि ब्रह्मपुत्र 2900 किमी लम्बी है और इसका पाट भी गंगा के मुकाबले काफी चौड़ा है।हालाँकि इसका बहुत कम भाग ही भारत से बहता है जबकि गंगा अधिकतम क्षेत्र से बहती है।
खैर,किनारे पर ही नदी पार कराने वाले बजरे (बड़ी सी नाव)दिखाई पड़े जो मोटर साइकिल स्कूटर आदि भी एक किनारे से दुसरे किनारे पहुचाते थे।(गोवा की याद आ गयी) दस रुपये का टिकट लेके हमने नदी पार की।नदी के मध्य में टापू बन गये थे और इनपे मंदिर भी निर्मित कर दिए गये थे जिसके लिए अलग बोट से जाना होता था।हमने भी ब्रह्मपुत्र पार की और दुसरे किनारे से इसी तरह लौट भी आये।

टापू पर बने मंदिर


बोट पर

बोट पर

लंच किया और कामख्या तक की 40 घंटे की यात्रा ने थका दिया था तो गेस्ट हाउस पहुच के आराम किया। सायंकाल वहा का पल्टन बाज़ार देखा जो हर शहर के सामान्य बाज़ार की तरह भीड़ भाड़ शोरगुल भरा था।

हाथ ठेला खीचता मजदूर

हाथ ठेला खीचता मजदूर


रात्रि में इंटरसिटी में बैठ कर निकल पड़े ईटानगर की ओर।

ईटानगर की सैर :चौथा दिन (बुधवार)
सुबह 5 बजे पहुचने वाली ट्रेन 4.30 पर ही पहुच गयी पर हल्का सा उजाला होना शुरू हो चूका था,(इस भाग में सूर्योदय सूर्यास्त काफी जल्दी होता है)
हमारे मेजबान परमिट ले के इंतज़ार कर रहे थे..स्वाभाविक रूप से काफी ठण्ड थी यहाँ।चेकिंग आदि फॉर्मेलिटी पूरी करके लगभग 8 किमी दूर ईटानगर स्थित गेस्ट हाउस पहुच गये। एक पहाड़ी छोटा सा किन्तु सुन्दर शांत नगर राज्य की राजधानी जहा 2 साल पहले तक रेल भी नही थी सिर्फ बस या हेलीकाप्टर ही पहुचने का साधन था।
स्नानादि पश्च्यात 10 बजे शहर से लगभग 6 किमी की दूरी पर एक सुन्दर सी जगह है गंगा लेक( स्थानीय भाषा में Gyakar Sinyi )(झील के साथ एक मिथक जुड़ा हुआ है कि यह झील शापित है और रात के समय कोई भी इस स्थान पर जाने की हिम्मत नही करता) …एक पहाड़ ऊपर के अंतिम सिरे पर एक झील है जहा घुमावदार रास्तो से होके पंहुचा जाता है। (इस शहर में दर्शनीय स्थलों तक पहुचने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा किसी तरह के दैनिक टूर आदि की कोई व्यवस्था नही है अतः आपको स्वयं अपनी व्यवस्था करनी पड़ेगी। हम भाग्यशाली थे की हमारे मेजबान ने ड्राईवर सहित अपनी गाडी दो दिन के लिए हमारे हवाले कर दी थी) तो हम उक्त स्थान पर पहुचे और थोडा पैदल रास्ता पार कर ऊपर जा के देखा तो अत्यंत मनमोहक दृश्य दिखाई दिया। चारो तरफ पहाड़ और बीचोबीच एक सुन्दर स्वच्छ झील। ऐसा लग रहा था किसी ने एक विशाल कटोरे में पानी भर के पहाड़ी पर रख दिया है। चारो तरफ इतनी शांतता शहरों में तो अब संभव नही रही। अलग अलग चिडियों की आवाज़े ही इस शांति को भंग कर रही थी किन्तु वो भी अत्यंत मनमोहक लग रही थी। वहा इतनी सफाई थी जैसे कभी इंसान के पाँव नही पड़े। पर यहाँ काफी पर्यटक आते है और स्वछता का भी ख़याल रखते है ऐसा दिखा। पैडल बोट भी चलती है। कोई स्वल्पाहार इत्यादि की दुकाने ना होने से भी रैपर्स या कैन या बोतलें आदि कचरा फेके जाने की गुंजाइश नही थी।लगभग तीन चार घंटे बिताये और ये अहसास हुआ की हम यहाँ हमेशा नही बैठे रह सकते अतः मन मार के उठे और इतनी सुन्दर जगह देखने के बाद कुछ और देखने का मन नही था तो वापस गेस्ट हाउस आ गये।

झील पर


बौद्ध मंदिर और अन्य जगह : पांचवा दिन (बृहस्पतिवार)
ईटानगर में विशेष कुछ देखने लायक स्पॉट्स नही है सिर्फ राजधानी शहर होने से पर्यटक भी अधिक नही आते। जिरो और तवांग जैसी जगह ही अधिक लोकप्रिय है जो ईटानगर की अपेक्षा गुवाहाटी से ज्यादा करीब है। इसके अलावा परमिट लगने की वजह भी विकर्षण की एक वजह मालूम पड़ती है। पर्यटकों को झंझट का काम नही चाहिए होता है जब वे वेकेशन पर हो तब।
आज लोकल स्पॉट के लिए निकले और सबसे पहले एक बौद्ध मंदिर देखने गये।
यहाँ बौद्ध भिक्षुओ के लिए ध्यान उपासना की व्यवस्था है।
बौद्ध मंदिर

बौद्ध मंदिर


अगला स्थल था जवाहरलाल नेहरु म्यूजियम जहा अरुणाचल की विभिन्न जनजातियो का रहन सहन खान पान आदि विभिन्न मूर्तिमय झाकियो के माध्यम से दर्शाया गया है।
दो मंजिला इस म्यूजियम के दुसरे तल पर स्थानीय जनजाति के लोगो द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रो और आभूषणो को प्रदर्शित किया गया है। वही पर्वतारोहियो द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले उपकरणों व अत्यंत शीत की स्थिति में धारण किये जाने वाले विशेष वस्त्रो का प्रदर्शन भी किया गया है जो की मेरे रूचि से मेल खा रहा था इसलिए अधिक दिलचस्प लगा।
पर्वतारोही के उपकरण

पर्वतारोही के उपकरण


आज के अंतिम स्थान के दर्शन यहाँ देश की नवीनतम बुद्ध मोनेस्ट्री था जिसे स्वयं श्री दलाई लामा ने उदघाटित किया था। दर्शनीय मठ और बाहर एक स्तूप।

स्तूप

स्तूप


सभी बौद्ध मठो में एक अलग तरह की शांतता महसूस होती है जो यहाँ भी थी।
अब हमारा ईटानगर का सफ़र समाप्त होने को था। रात 10 बजे नहारलागुन से गुवाहाटी की ट्रेन लेंगे और सुबह वही से सीधे मेघालय की राजधानी शिलोंग पहुचेंगे जिसे स्कॉटलैंड ऑफ़ द ईस्ट भी कहते है।
उसका वर्णन अगले भाग में|


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