LAHAUL & SPITI Valley …trans Tibet journey
नमस्कार मित्रों
एक बार फिर हाज़िर हूँ अपनी इस रोमांचक यात्रा विवरण के साथ।
कोरोना महामारी के इस भीषण समय में जब एक इंसान दूसरे इंसान पे विश्वास खो चुका था तब स्पीती की पंचायतों ने आपस में मिल जुल कर फ़ैसला लिया था कि जब तक ये पेंडेमिक खतम नही हो जाता तब तक सैलानियों का वैली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया जाए। इसी के चलते लगभग पंद्रह महीने (एप्रिल 2020 से जून 2021 तक ) स्पीती पूरी तरह बंद रही। इसी कारण से देश में सब से कम बीमारी का प्रसार इस क्षेत्र में हुआ।हालाँकि हिमाचल प्रदेश ( लाहौल स्पीती हिमाचल का ही एक भाग है) में कोरोना ने अपना विकराल रूप दिखाया था।
विगत दो तीन वर्षों में कई बार यात्रा कार्यक्रम बना पर स्थगित होता रहा पर जैसे ही स्पीती सैलानियों के लिए खुला हमने ठान लिया की अब की बार जाना ही है।
बेहद खूबसूरत किंतु अत्यंत ख़तरनाक ये क्षेत्र विभिन्न ख़तरों से भरा पड़ा है। भू स्खलन की घटनायें हिमालय में सर्वाधिक इसी क्षेत्र में होती रहती है। और यहाँ पर्यटन का मुख्य समय होता है जून से ऑक्टोबर। वर्ष के बाक़ी महीनो में भारी हिमपात यहाँ के अधिकांश मार्ग बंद कर देता है। हमने पहले ऑगस्ट का प्रोग्राम तय किया था तभी तीन चार भूस्खलन की घटनाओं ने हमें झिंझोड़ दिया जिसमें एक घटना जो रामपुर के पास हुई और हिमाचल परिवहन की एक बस गिरने से लगभग 29 यात्री मारे गए और इतने ही घायल हए थे। इससे कुछ ही दिन पहले दिल्ली के छः पर्यटक भी इसी के आसपास कालकवलीत हो चुके थे। इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखते हुए हमने अपने ट्रैवल एजेन्सी से अनुरोध कर सेप्टेम्बर में जाने का तय किया। हालाँकि ख़तरा तब भी कम नही होनेवाला था।
हिमाचल प्रदेश के उत्तर पूर्वी भाग में बसा एक खूबसूरत हिस्सा स्पीति इंसान की कल्पनाओं से परे है. इस जगह को अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पहचाना जाता है. यहां की झीलें, बर्फ से ढके पहाड़ वाकई में अद्भुत है. अब यह जगह प्रकृति प्रेमियों के लिए एक मनपसंद अड्डा बन चुकी है. यह जगह धार्मिक अध्यात्म से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां आपको बौद्ध धर्म से जुड़ी कई मोनेस्ट्री देखने को मिलेगी.
स्पीति एक तरह से ठंडा रेगिस्तान जैसा ही है क्योंकि यहां बारिश कभी कभार ही होती है. स्पीति घूमने जाना अडवेंचर से भरा हो सकता है. यहां के पहाड़ और पर्वत श्रृंखला पूरी तरह से बंजर हैं. ट्रेकिंग में दिलचस्पी है तब भी स्पीति वैली आपके लिए एक उम्दा जगह हो सकती है. अगर आप भी शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ सुकून के कुछ पल बिताना चाहते हैं तो चले आइए लाहौल-स्पीति जहां आप इन जगहों की सैर कर सकते हैं…
हर बार की तरह छः मित्रों ने मिलकर जाना तय किया ( पहली बार विवेक दंडवते भी हमारे ग्रूप का हिस्सा बने)और इसके दिए चंडीगढ़ से एक इनोवा क्रिस्टा वाहन अगले दस दिन तक हमारा आवास बनने वाला था क्योंकि यात्रा मार्ग ही हमारा मुख्य निवास था होटल तो सिर्फ़ रात्रि विश्राम हेतु बुक किए गए थे.स्पीती वैली सर्क्यलर यात्रा है जिसे दो तरफ़ से आरम्भ और समाप्त किया जा सकता है,पहला शिमला से प्रवेश और मनाली से निकास और दूसरा इसके उलट।
हमने शिमला से प्रवेश उचित जाना क्योंकि इससे धीरे धीरे ऊँचाई की ओर बढ़ते है और शरीर अपने को उस अनुसार ढाल लेता है ।हम सभी वरिष्ठ नागरिकों को अपनी अपनी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं से भी निपटना था।
पहला दिन 18 सेप्टेम्बर 2021
पहला दिन चंडीगढ़ से शिमला तक का था जहां हमें लगता था की मार्ग में वैक्सिनेशन सर्टिफ़िकेट आदि की जाँच एवं पर्यटकों का रेजिस्ट्रेशन इत्यादि में अधिक समय लगेगा,किंतु मार्ग में ना तो कोई पुलिसकर्मी मिला ना चौकी ना ही किसी ने मास्क आदि के लिए टोका ।लगा सारी सावधानियाँ बस अख़बारों और न्यूज़ चैनल का पेट भरने के लिए है। वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नही था।आश्चर्य नही होगा अगर ऐसे ही तीसरी लहर भी आ जाए तो।
ख़ैर हम पूर्ण सावधानी रखते हुए ही आगे बढ़ेंगे ये तय था।
होटल में चेक इन किया ।यथा समय भोजन कर सोने चल दिए।कल से चिरप्रतीक्षित स्पीती का खूबसूरत और रोमांचक सफ़र शुरू होने को था।
दूसरा दिन 19/9/2021
शिमला से सुबह नाश्ता कर के उत्साह के साथ तैय्यार होकर गाड़ी में सवार हुए।सांगला की दूरी शिमला से 220 किमी है राष्ट्रीय राजमार्ग 5 से होते हुए।हमें लगभग आठ घंटे का समय लगने वाला था और मन में भय को समाए हम चल पड़े थे उसी रास्ते पर जिसने कई इंसानो की बली ली थी पिछले एक माह में।
भय तो हिमालय की यात्राओं का एक हिस्सा हमेशा ही होता है एवं यही कारण है की रोमांच की खोज में यात्री हिमालय के विभिन्न हिस्सों की यात्राओं का आनंद उठाते है ।
यह राजमार्ग बहुत सुंदर था सतलुज के किनारे किनारे बेहद सुंदर हरी भरी वादियों के बीच हम लोग चले जा रहे थे।दो बजे के आसपास एक ढाबे में लंच लिया।
रास्ते में सेब से लदे फ़दे बाग मन मोह रहे थे।इच्छा थी कि अपने हाथों से तोड़कर खाया जाए,😉इन्ही खूबसूरत रास्तों से आगे बढ़ते हुए अचानक महसूस हुआ की गाड़ी अब अधिक हिचकोले खा रही है।सुंदर रास्ता समाप्त था और अब ऊबड़ खाबड़ हिमलायीन रास्ता शुरू हो चुका था ।गति में अचानक कमी आने लगी और टेड़ेमेढ़े ऊँचे नीचे घुमावदार सड़क से होते हुए सांगला पहुँचे तब अंधेरा हो चुका था ,पता लगा हमारा रात्रि विश्राम जिस होटल में बुक था वो अभी दस किमी और आगे रक्षम नामक छोटे से गाँव में था,डरावनी संकरी सड़क अंधेरा ठंडा वातावरण किसी भूतहां फ़िल्म का सीन महसूस हुआ किंतु सौभाग्य से हमारा वाहन चालक अत्यंत कुशल था ऐसे रास्तों के लिए ।तो सुरक्षित होटल किन्नर रिट्रीट पहुँचे और दिन भर की थकान उतारने के लिए सभी गरम पानी में नहाए।तरोताज़ा हुए और डिनर में देर थी तो कैरीओकी के साथ गीत गाए और आनंदित हुए।डिनर पश्चात रात्रि की नींद अच्छी आनेवाली थी दिन भर प्रवास के बाद।
तीसरा दिन 20/09/2021
सभी ने तय किया था की स्नान का कार्य दिन की समाप्ति पर ही किया जाएगा ताकि सुबह समय नष्ट ना हो एवं जितनी जल्दी निकल सके उतना अच्छा क्योंकि सूर्य की गर्मी ग्लेशीयर को पिघलाती है जिस से पहले से ही ख़तरनाक रास्तों पर से पानी का बहाव बढ़ जाता है और वाहनो के फिसल कर दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
आज सब से पहले रक्षम से चिटकुल जाना था ।लगभग दस किमी का बेहद ऊबड़ खाबड़ रास्ता वन विभाग के अंतर्गत आता है जिसमें बहुत विशाल आकार के बोल्डर दोनो तरफ़ बिखरे हुए थे,आश्चर्य होता है देख कर की एक तरफ़ तो भुरभूरे पर्वत जो कभी भी कही भी धसक जाने को तैयार दूसरी ओर ऐसी विशाल चट्टानें,अदभुत है प्रकृति की रचना भी।
लगभग घंटे भर के बाद चिटकुल पहुँचे,ये तिब्बत बॉर्डर पर बसा भारत का अंतिम गाँव है
यही आख़री पोस्ट ऑफ़िस भी था,कुल मिलाकर यहाँ जो कुछ भी था वो आख़री था,हालाँकि चीन सीमा यहाँ से साठ किमी दूर है पर बीच में कुछ नही है।ग्यारह हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर ठंड होना अस्वाभाविक नही था ,नीचे बस्पा नदी बह रही थी,आसपास की सुंदरता ,मंद मंद बहती हवा वातावरण को रोमांटिक बना रही थी और हमारे साथ के युवा जोड़े इसमें आनंदित हो तस्वीरें ले रहे थे।
लगभग एक घंटा वहाँ बिता के वापस रक्षम गाँव होते हुए अगला पड़ाव क़ल्पा था।लंच करके लगभग तीन घंटे में किन्नौर ज़िले के हेडक्वॉर्टर रेकोंगपियों से होते हुए हम क़ल्पा में हमारे होटेल कैलाश व्यू पहुँचे,।
हरे भरे घने पाइन के वृक्षों से भरे हुए पर्वत क्षेत्र को अलग ही सुंदरता प्रदान कर रहे थे और अचानक जब होटल के लिए गाड़ी से उतरे तो आश्चर्य मिश्रित आनंद हुआ देखकर की होटल सेवफल के बड़े से बाग के बीचोबीच स्थित था।उम्मीद जागी की शायद तोड़ कर खा सकेंगे ,
किंतु तभी एक बोर्ड दिखाई दिया जिसपे लिखा था सेब तोड़ने पर जुर्माना रु 500/-
राशि भले अधिक नही थी पर बाग़बान का मंतव्य स्पष्ट था की तोड़ना मना है,मन मसोस कर रह गए ,18/20 की उम्र होती तो नोटिस की परवाह ना भी करते पर परिपक्व आयु में ये अशोभनीय होता।
अंधेरा हो रहा था ,ताश आदि खेलते हुए डिनर का इंतज़ार था।सभी जगह सुबह का नाश्ता और रात्रि भोजन हमारे टूर में शामिल था,लंच हमें अपने खर्च पर करना था।
सुबह पाँच बजे जागे तब देखा सामने बेहद विशाल आकार का पर्वत जिसकी चोटियाँ आसमान छू रही थी और सफ़ेद झक्क ताजी बर्फ़ से आच्छादित,रात्रि में हिमपात हुआ था जिसकी ठंड हमें आप्लावित कर ठीठुरा रही थी,नीचे का हिस्सा हमारा होटल सब घने कोहरे में घिरे थे।
कुछ देर बाद जब कोहरा छटा तब विशाल क़िन्नेर कैलाश पर्वत सामने था
मंत्रमुग्ध हो गए तभी नाश्ते का ऑर्डर भी आ गया और सब आगे की यात्रा के लिए पैकिंग करने लगे,यहाँ रोज़ ही होटल छोड़ना होता था और अगले पड़ाव की तरफ़ बढ़ना होता है,
चौथा दिन 21/09/2021
आज नाकों गाँव होते हुए ताबो तक का 170 किमी लम्बा सफ़र था जिसमें अब पहली बार स्पीती की वास्तविक सुंदरता दिखाई देनी थी,।
सब से पहले एक सूयसायड पोईंट के लिए निकले जो की एक बेहद गहरी खाई थी और किसी के गिरने पर उसका शरीर भी मिलने की गुंजाइश नही थी इसीलिए ये नाम दिया गया हालाँकि पता चला की किसी ने कभी भी वहाँ से आत्महत्या नही की थी,छोटे छोटे गाँव में इसी तरह के छोटे टुरिस्ट पोईंट बनाए है अन्यथा गाँव में और कुछ होता नही है,
अब नीचे उतरते रहे और सतलुज को छोड़कर हम स्पीती नदी के किनारे जैसे जैसे आगे बढ़ने लगे वैसे वैसे पर्वत से हरियाली ग़ायब होती गई और विभिन्न रंगो के पहाड़ दृष्टिगोचर होना शुरू हो गए थे
तिब्बत के अधिकांश पर्वत ऐसे ही वृक्ष विहीन उजाड़ किंतु बेहद खूबसूरत विभिन्न रंगो और आकार में ढले हुए होते है,लद्दाख़ यात्रा में भी आपको ऐसे ही पहाड़ मिलेंगे
घंटे भर की यात्रा के बाद 3800मीटर की ऊँचाई (12500 feet) पर नाकों गाँव पहुँचे जहाँ का एकलौत आकर्षण एक झील है जिसके आसपास गुलाबी रंगो के वृक्षों से सजा बाग है जो ग्रीष्म ऋतु में दिखता है। एक छोटा सा ब्रेक लेकर अब नाकों से नीचे उतरना था और स्पीती नदी के साथ चलते रहे ,उम्र कोई भी हो अगर मन में बच्चा जीवित हो तो नदी पास देख कर मन उसके पानी में अठखेलिया करने को विवश कर ही देता है,यही हमारे साथ हुआ।सारे लोग गाड़ी से उतर के बर्फ़ से ठंडे पानी में उतर पड़े
यहाँ से जाने का मन नही हो रहा था किंतु ऊबड़ खाबड़ रास्ता ,पहाड़ों का कभी भी बदल सकने वाला मौसम और रात तक होटल पहुँचने की विवशता….ये सब हमें निकलने को मजबूर कर रहे थे और फिर आगे भी तो बढ़ना ही था। रास्ते के छोटे छोटे गाँव चांगो,शलकार,सुमडो,आदि पार करते पर्वतों की भिन्न भिन्न आकृतियाँ देखते हुए शाम को ताबो पहुँच गए,
यहाँ के पर्वतों नदियों और विभिन्न रंगो का वर्णन शब्दों में ढाल पाना नामुमकिन लगता है ,इसकी सुंदरता तो आँखो से देखकर ही महसूस की जा सकती है।फ़ोटो विडीओ इनके सिर्फ़ झलक दिखाने के काम के है।
ताबो में जिस होटल में हमारा आवास था वो पूरे टूर का सर्वश्रेष्ठ आवास साबित हुआ,kesang homestay,आवास तो अत्यंत सुंदर था ही,मन मोह लिया यहाँ से दोनो काम करने वालों ने,उन्होंने इतने प्रेम से स्वागत किया जैसे माँ बाप घर लौटने पर अपने बच्चों का स्वागत करते हो ,कभी जाए तो वही रुकने का प्रयास करे।
छोटा सा किंतु बेहद खूबसूरत पहाड़ी कटोरे में बसा हुआ ,स्वच्छ सुंदर ।यहाँ भी लगभग हज़ार वर्ष पुरानी मोनेस्ट्र है और दसियो गूफ़ाए जिनमे बौद्ध भिक्षु तपस्या ध्यान करते थे।
नाको से निकल कर लगभग 40 किमी बाद एक रास्ता काज़ा की ओर निकलता है और दूसरा रास्ता बारह किमी दूर गेयु गाँव तक पहुँचता है यही एक मोनेस्ट्री में लगभग 500 वर्ष पुरानी ममी रखी हुई है ,इसमें उल्लेखनीय है कि ये किसी तरह के रासायनिक पदार्थ के उपयोग हुए बिना हाई सुरक्षित है ।इसे और अधिक सुरक्षित रखने के लिए पास ही एक नयी मोनेस्ट्री का निर्माण किया जा रहा है,
पाँचवा दिन 22/09/2021
सुबह ताबो मोनेस्ट्री और गाँव में घुम फिर कर नाश्ता करने वापस आए और बेहतरीन ब्रेड औमलेट ब्रेड बटर आलु पराँठे और दूध एवं चाय तैय्यार थे। मेज़बान बेहद गर्मजोशी से परोस रहे थे।पुणे से आए हुए कुछ बुजुर्ग युगल भी हमारे साथ ही रुके थे,हमें लग रहा था की इस तरह के रास्ते महिलाओं की दृष्टि से कठिन है किंतु पुणे के इन तीन चार युगल हमारी धारणाओं को ग़लत साबित कर रहे थे।
पैकिंग कर गाड़ी में अगले सफ़र की शुरुआत की,
आज सब से पहले ढंगकर मोनेस्ट्री जाना था ये तीन सौ मीटर ऊपर एक cliff पर बनी हुई है और आज भी विश्व की सब से ख़तरनाक रहने की जगह में से एक मानी जाती है। दूर से देखने पर ये हवा में लटकी हुई सी प्रतीत होती है। सत्रहवीं शताब्दी तक यही स्पीती की राजधानी रही। यहाँ एक नयी मोनेस्ट्री भी बन रही है जिसके बच्चों के लिए स्कूल आदि की व्यवस्था भी है। कोरोना के बढ़ने के कारण शायद ये पर्यटकों के लिए बंद थी। अतः हम अंदर नही जा पाए जबकि कुछ ही दिन पूर्व मेरे मित्र अंदर जा कर दर्शन ले पाए थे।
आसपास का की दृश्यावली मोहक थी ही पर आगे पिन वैली की सुंदरता अवर्णनीय थी। नीचे बहती हुई नदी विभिन्न हिस्सों में बँटकर लुभावने चित्र बना रही थी।
हिमाच्छादित पर्वतों की चोटियाँ लुभावने लैंड्स्केप नीलाभ रंग लिए नीचे बहती स्पीती नदी….लगता था हम किसी अन्य ग्रह पर आ गए है जहाँ इंसानी आबादी शून्य है ही अन्य प्राणी भी नही दिख रहे थे जब की पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान है। चमत्कृत से आगे बढ़ते रहे और सायं चार बजे काज़ा पहुँचे। वहाँ मार्केट के बीचोंबीच हमारा होटल कुंजुम स्पीती इन स्थित था। होटल साधारण श्रेणी का ही था किंतु यहाँ का स्टाफ़ भी बेहद सहयोगी विनम्र और मित्रवत् था। सामान्यतः सभी जगह हिमाचल हो या अन्य पहाड़ी राज्य ,लोग बेहद शालीन और विनम्र ही मिले।
इस जगह दो रात्रि का निवास था। रात्रि को आइपीएल के मैच के लिए यह टीवी भी उपलब्ध था। काज़ा स्पीती ज़िले का हेड क्वॉर्टर होने से यहाँ अन्य गाँव के मुक़ाबले मार्केट भी बड़ा था यहाँ विश्व की सब से ऊँचाई पर स्थित स्टेट बैंक की शाखा भी थी।
और साथ ही विश्व का सब से ऊँचा पेट्रोल पम्प भी था।
आने वाले कुछ दिनो में हम विश्व के अनेक उच्च स्थानो का भ्रमण करने वाले थे।
अगले दिन की प्रतीक्षा में जल्दी सोने चले गए।
छठा दिन 23/09/2021
आज दिन भर आसपास के स्थान देखकर वापस काज़ा में ही वापस आना था और सामान पैकिंग से मुक्ति थी तो आराम से तगड़ा नाश्ता करके नौ बजे निकलने का तय था ।आज हमारे साथी मित्र अशोक ने हमारे लिए पोहे बनाए थे और यक़ीन कीजिए किसी माहिर शेफ़ से भी अच्छे बन पड़े थे।
सब से पहले की KI मोनेस्ट्री , हम लोगों की दिलचस्पी साधारणतः किसी मंदिर या मोनेस्ट्री देखने में कम ही होती है हेमकुंड या बद्रीनाथ जैसी जगह की बात अलग है किंतु जगह जगह बने मंदिर आदि हम लोग नही जाते। इस की मोनेस्ट्री में एक बौद्ध भिक्षु ने बहुत प्यार से वहाँ की प्रसिद्ध बटर टी पीने को दी और ये बहुत स्वादिष्ट थी ,उन्हें धन्यवाद दिया,वहाँ छोटे छोटे बच्चे बौद्ध वस्त्रों में स्कूल जा रहे थे,बच्चे तो फिर बच्चे ही होते है कोई भी वस्त्र पहना दो उनके जीवन में कोई अंतर नही आता,अपने दोस्तों में मगन उनकी शैतानिया चालु थी ,अपना बचपन याद आना स्वभाविक था।
अगला पड़ाव था हिक्किम….ऊपर ऊपर चढ़ते हुए 4400 मीटर ( 14435 feet) की ऊँचाई पर स्थित हिक्किम गाँव पहुँचे ,एक छोटा सा गाँव सिर्फ़ इसलिए प्रसिद्ध हुआ क्योंकि यहाँ विश्व का सब से ऊँचाई पर एक पोस्ट ऑफ़िस स्थित है,लगभग सभी पर्यटक यहाँ से अपने अपने घर एक पोस्टकार्ड भेजते है ( हमने वो भी नही किया)
सब ने वहाँ अपने फ़ोटो ज़रूर खिचवा लिए,यहाँ इतनी कठोर परिस्थिति में भी पोस्टल विभाग ने सुविधा प्रदान की हुई है जिस से आसपास के लोगों को अपने अपने क़रीबियों से सम्पर्क करने में परेशानी ना हो,आजकल तो मोबाइल फ़ोन द्वारा सब कुछ आसान हो गया है किंतु दस बारह वर्षों पूर्व यही एकमात्र सुविधा थी और इसके लिए विभाग को शत शत प्रणाम है।एक बस जो तीन दिन में एक बार हिक्किम पहुँचती है वही डाक लेकर जाती है ।
अगला हमारा पड़ाव था कोमिक नामक गाँव ,ये विश्व का सब से ऊँचा बसा हुआ गाँव है (4513 meters 14806 feet)जहां की आबादी मात्र 117 थी।ये सब से ऊँचा गाँव है जो motorable road से जुड़ा हुआ भी था,
और चूँकि ये सब से ऊँचा था तो यहाँ जो कुछ भी था वो सब से ऊँचा होना ही था।
सब से ऊँचा रेस्टौरेंट जहां चाय भी 80/- रु की थी,
सब से ऊँचा बस स्टैंड ।
और भी बहुत सी जगहें।
पर इतनी ऊँचाई तक पहुँचना अपने आप में एक दुष्कर कार्य है और आश्चर्य है की लोग रहते भी है ऐसी कठिन परिस्थितियों में।जगह की सुंदरता के बारे में दो राय नही हो सकती परंतु सुविधाओं के नाम पर अत्यधिक अल्प साधन में रहना सच में दुष्कर है।
हिक्किम कोमिक के बाद आज ही अगली जगह थी 14435 फ़ीट की ऊँचाई पर बसा लांग्ज़ा गाँव जहां मात्र 133 लोगों की बस्ती थी।रुकते हुए फ़ोटो विडीओ लेते हुए हम पहुँचे थे चिचम गाँव वो भी यहाँ के प्रसिद्ध चिचम ब्रिज होते हुए
लाहौल स्पीति के चिचम गांव को जोड़ने वाला यह पुल 14 हजार फुट की ऊंचाई पर सांबा-लांबा नाले पर बना है। 120 मीटर लंबा, 150 मीटर ऊंचा। 5 करोड़ 50 लाख रु. खर्च आया और बनने में 16 साल लगे। काजा और चिचम के बीच की दूरी 60 किलोमीटर थी। पुल बनने से गांव और काजा उपमंडल के बीच की दूरी 25 किमी कम हो गई है। 4 सितंबर को इसे वाहनों के लिए खोला गया था। ये एशिया का सबसे ऊंचाई पर बना रोड ब्रिज है। पहले ये गौरव चीन को मिला था। अब भारत के नाम है।जय हिंद।
भारत के सिविल कन्स्ट्रक्शन के गौरवशाली इतिहास में हिमालय में निर्मित साधारण से दिखने वाले काम भी इतनी अधिक विपरीत परिस्थितियों में पूर्ण किए जाते है परंतु उनकी खबरें अन्य भाग में बसे भारतीयों तक पहुँच भी नही पाती है।एक जगह हमें बिहारी मज़दूरों का एक समूह मिला जिसमें शामिल एक महिला का हम पर कमेंट किया गया था “इतनी ठंड में ये लोग क्या देखने आते है ?”
हम यहाँ मौज करने आए है दो चार दिन में चले जाएँगे किंतु ये मज़दूर अपनी रोज़ी रोटी कमाने अपने शहर गाँव से दूर इतनी ऊँचाई ठंड और आवागमन उपलब्ध ना होने के बावजूद सड़के बनाने के काम में अपना अमूल्य योगदान दे रहे है जिस से पर्यटक आसानी से इनका आनंद ले सके।
बिहार से सर्वाधिक IAS IPS अधिकारी बनते है पर ये बात भी उतनी ही सच है की इन बिहार और पूर्वांचल के मज़दूरों के अथक मेहनत के बिना कोई भी संरचना पूर्ण नही हो पाती।
पर्यटक भी इन विषयों पर बारीकी से सोचते होंगे क्या ?
ख़ैर, अपनी दिन भर की यात्रा को समाप्त करते हुए हम अपने होटल में लौट आए और थकान से चूर हो के अपने अपने बिस्तरों के हवाले हो गए ।
सांतवा दिन 24/09/2021
आज सुबह नाश्ता करते करते हमारे चालक ने सूचित किया (या यूँ कहिए डराया ) कि आज का दिन बहुत अधिक कठिन होने वाला था ।कुंजुम पास होते हुए चंद्रताल तक पहुँचना है और इन रास्तों पर कभी भी ट्रैफ़िक जाम हो जाता है ,बर्फ़बारी के कारण रास्ते बंद हो जाते है और कई बार तो दो दो दिन तक लोग अटके रहते है अतः भरपूर पानी व खाने का सामान गाड़ी में रख लीजिए ताकि ऐसी किसी परिस्थिति में समस्या का सामना ना करना पड़े।
पहाड़ों में ये समस्या आम है और हम कई बार ऐसी परिस्थितियों से दो चार हो चुके है अतः हमने उसकी चेतावनी को अधिक महत्व ना देते हुए पानी की सात आठ बोतलें और बिस्किट आदि रख लिए थे।
रास्ता वास्तव में बेहद कठिन था,अब तक डामर रोड मिलती रही थी किंतु यहाँ वो भी नदारद।
जगह जगह ऊपर के ग्लेशीयर से पिघल कर कच्ची सड़क पर तेज बहता हुआ पानी,उसमें से गाड़ी निकलना,किसी भी वाहन चालक की दक्षता की परीक्षा थी…
कुंजुम टॉप पर एक मंदिर बना हुआ है जहां से माता का आशीर्वाद ले कर ही आगे बढ़ने की परम्परा थी जिसका हमने भी पालन किया।आसपास अत्यंत लुभावनी दुनिया बसी हुई थी ,चारों ओर विशाल बर्फीली चोटियाँ,बर्फ़ से ढँके हुए पहाड़,उस जगह को इतना सुंदर बना रहे थे की लगता है स्वर्ग की कल्पना जिस ने भी की है वो ऐसी ही किसी जगह पर बैठ के की है।अप्रतिम सुंदर….
माता के दर्शन कर अब पुनः यात्रा आगे बढ़ी,अब इस रास्ते को रास्ता कहना रास्तों का अपमान होता 😂😂
नीचे बेहद गहरी खाइयाँ और बेहद संकरे रास्ते हमने अमेरिका के ग्रांड कनियन के देखे हुए फ़ोटो जैसे लग रहे थे,हमारे देश में वो सब कुछ उपलब्ध है जिसे देखने लोग बाहर देश जाते है,कारण सिर्फ़ इतना है कि यहाँ उन स्थानो तक पहुँचने की आसान सी सुविधा उपलब्ध नही है
बेहद दुर्गम रास्तों का सफ़र सिर्फ़ हमारे जैसे पागल ही करते है ऐसा लगता है और चंद्रताल पहुँचते पहुँचते ऐसा लगा की हम अकेले पागल नही थे बल्कि पूरी पागलों की बस्ती थी वहाँ तो,
पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के लगभग डेढ़ दो किमी का एक ट्रेल है ताल तक पहुँचने के लिए,
आज पहली बार चलते हुए महसूस हुआ की समुद्र सतह से 14300 फ़ीट की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी का क्या मतलब होता है
हर दस मिनट में साँस फूल रही थी,
धीमे कदमों से चलते रहे और एक मोड़ पर वो अदभुत मंजर दिखाई दिया जिसके लिए दिन भर गाड़ी में धक्के खाए थे।
फिर तो सारी थकान ग़ायब हो गई और नए उत्साह का संचार हुआ ।अचंभित रह गए सभी,
किसी के मुँह से आवाज़ नही निकल रही थी
झील के सौदर्य का वर्णन तो कोई कवि ही कर सकता था,
स्फटिक के रंग की स्वच्छ झील
अत्यंत साफ़ नीला गहरा नीला आकाश जिसकी हम शहर वासी सिर्फ़ कल्पना ही कर सकते है,
सभी कुछ देर बाद होश में आए और सिलसिला शुरू हुआ सेल्फ़ी,सोलो,और ग्रूप फ़ोटोग्राफ़ी का,
यहाँ खान पान की कोई व्यवस्था नही है और इसी कारण इतनी स्वच्छता है,वरना इंसान पहुँचे और गंदगी ना करे ये उसके स्वभाव के विपरीत था।लेह लद्दाख़ इसका हाल फ़िलहाल का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है,2008 का स्वच्छ लेह 2019 में कचरे के ढेर में तब्दील हो रहा है।अटल टनल के बाद लद्दाख़ का भगवान ही मालिक होगा 😭
अगर आप पागलपन की हद तक घूमने फिरने के शौक़ीन हो तो इस जगह जाना बिल्कुल ना भूले।
ऐसी जगह आप बस जा के लौट सकते हो….वहाँ रहने की कोई जगह नही थी,
लगभग पाँच से सात किमी दूर हिमाचल पर्यटन विभाग ने कैम्पिंग की इजाज़त दी है ताकि हम जैसों को रात बिताने की सुविधा मिल जाए।ढेर सारी कम्पनियों के स्विस टेंट्स की बस्ती थी और बिना पूर्व रेज़र्वेशन के वहाँ कोई जगह उपलब्ध नही होती,।
यहाँ ये बात विशेष रूप से बताना चाहूँगा कि किसी भी प्रकार से बाहरी संसार से सम्बन्ध स्थापित करने की कोई गुंजाइश नही है,ना मोबाइल नेटवर्क ना और कोई साधन।
वैसे भी पूरे क्षेत्र में BSNL के अलावा JIO ही उपलब्ध है,एयरटेल आयडीअ सब बेकार,
यहाँ हमारे साथ भारी दुर्घटना हुई,
हमारी एजेन्सी की भूल या लापरवाही या एजेंट या टेंट ओनर की चालबाज़ी? कुछ समझ नही आया किसे दोष दे,
हमारे पास टेंट बुकिंग स्लिप थी,जब हम पहुँचे तो वहाँ उपस्थित व्यक्ति ने कहा उसे कोई सूचना नही मिली और कोई जगह ख़ाली नही है ,हम हतप्रभ रह गए,रात हो चली थी,भीषण ठंड तापमान नकारात्मक संख्या में आ गया था,तेज हवा चल रही थी और सहायता करने के लिए कोई भी अधिकारी कर्मचारी उपस्थित नही था और ओनर ने हाथ झटक दिए थे,अजनबी व्यक्ति कहा जाए,रात में ऐसे ख़तरनाक रास्तों पे गाड़ी चला के लौटने का प्रश्न ही नही था।और लौटना भी मनाली तक जो की आठ से दस घंटे दूरी पे।हमने भी ठान ली की गलती हमारी तो नही थी और हम जगह ले कर ही मानेंगे चाहे गांधीगिरी या भगतसिंह मार्ग 😂🤣
जो होगा निपटेंगे भुगतेंगे,
हमारे तेवर देख कर ओनर का जोश ठंडा पड़ गया और उसने हमें डाइनिंग हॉल वाले टेंट में छः बिस्तर लगाने का ऑफ़र दिया,
अंधा क्या चाहे —दो आँख
हमें उसका प्रस्ताव यूँ भी आकर्षक लगा क्योंकि पहली बार हम छः एक साथ रहने वाले थे,
हम फ़ौरन तैयार हो गए,तभी पास के दो टेंट में सात आठ स्टूडेंट रह रहे थे और उन्हें हमारी बातें सुनाई दे गई,उन्हें भी एक साथ रहना था पर अलग अलग टेंट में मज़ा नही आ रहा था ,उन्होंने मनुहार की और हम ने उन्हें आज्ञा दे दी,वो भी प्रसन्न थे और हम भी हमारे बुक किए दो टेंट मिलने से ख़ुश थे,बस इस कश्मकश में दो घंटे ज़रूर ख़राब हो गए थे।
चेक इन किया और घनी अंधेरी रात में स्टारगेज़िंग करने बाहर आया…. इतना खूबसूरत आसमान सिर्फ़ हिमालय में ही सम्भव था… milkyway galaxy इससे पहले मुझे सरपास ट्रेक और केन्या के जंगल सफ़ारी में ही दिखी थी और उससे भी साफ़ यहाँ देखी,
ज़्यादातर कोंस्टेलशन साफ़ साफ़ पहचान में आ रहे थे,अभूतपूर्व आसमान था और रात में चाँद निकला तब तो सारी घाटी दूधिया रोशनी में नहा गयी…सब कुछ इतना अप्रत्याशित था कि स्वयं पर विश्वास नही हो रहा था की मै इतनी खूबसूरत जगह पहुँच गया हूँ या स्वप्न देख रहा हूँ।
आँठवा दिन 25/09/2021
रात ठंड एकदम बढ़ गई थी आसपास के पहाड़ों पर हिमपात हुआ भी दिखाई दिया पर सुबह आसमान साफ़ था और हमने तय किया की जल्दी से निकला जाए ताकि समय पर मनाली पहुँच सके,नाश्ता पैक करा के हम सात बजे ही निकल गए ।
एक घंटे के प्रवास के बाद प्रसिद्ध चाचा चाची के ढाबे पे बाटल नामक गाँव पहुँचे
सभी ने छक कर नाश्ता किया वही नित्य कर्म से निवृत हो के मनाली की ओर निकल पड़े,स्पीती वैली को goodbye करने का समय आ गया था,चंद्रताल से मनाली रास्ता भी नही जैसा ही है बेहद संकरा सिर्फ़ एक गाड़ी निकल सके ऐसा one of the most dangerous roads in India में शामिल है ये रास्ता।
लगभग सौ किमी का रास्ता पार करने में आठ घंटे लग गए और खोकसर पहुँच के लंच लिया,यहाँ फिर से हरियाली के दर्शन होने लगे थे,देवदार और चीड़ के वृक्षों से भरे पर्वत देखकर प्रसन्नता हुई,अब सोचना था कि रोहतांग पास से जाए या अटल टनल से,फिर तय हुआ की पास तो बहुत देख चुके है अब देश की नयी धड़कन “अटल टनल” देखी जाए ,
खोकसार से निकल पड़े
टनल से निकले सोलांग वैली पास ही थी पर अब सब शीघ्र होटल पहुँचना चाहते थे,एक एक हड्डी और जोड़ दर्द करने लगे थे,सारे शरीर ने आँखो के ख़िलाफ़ यूनियन बना ली थी की अब और नही,बहुत हो गई आँखोंकि ऐयाशी 😀😀
मनाली मॉल रोड होते हुए चंदन कॉटिज पहुँच के सभी ने विश्राम करना उचित समझा।
मनाली के जिस क्षेत्र में हम रुके थे वो निहायत ही साफ़ सुथरा भीड़ भाड़ से दूर था और बहुत सुंदर कॉटजेज़ बनी हुई थी,
गर्मागरम पकोड़े और चाय के साथ शाम का नाश्ता हुआ
नौवाँ दिन 26/09/2021
शाम छः बजे भोपाल वापसी की ट्रेन थी चंडीगढ़ से और मनाली से समय पर पहुँचना था ।
बीच बीच में मनाली चंडीगढ़ हाई वे पर बार बार लैंड स्लाइड की खबरें पढ़ते थे तो मन आशंकित था ।
हाइवे बहुत ही बुरी हालत में था,जगह जगह ट्राफ़िकजाम गड्ढे हमारी गति कम कर रहे थे
पंचकुला पर लगभग आधा घंटा फँसे रहे कालका में भी शहर से निकलना दूभर हो रहा था
अंततः हम लगभग साड़े चार बजे स्टेशन पहुँचे तब चैन की साँस ली
नियत समय छः बजे क़ालका शिर्डी ट्रेन आयी और उसमें सवार हम छः यात्री घर की ओर रवाना हुए अगले दिन सुबह सात बजे अपने घर…
HOME SWEET HOME
फिर मिलेंगे अगली यात्रा के बाद
तब तक के लिए जय हिंद 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
मनमोहक दृश्य एवं सुंदर वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपने अपना नाम नही लिखा 🙏🏼
सुंदर वर्णन ! ऐसा लिखा है की सारे दृष्य आंखो के सामने अंकित हो गये ऐसा लगा मैं वहा जाकर आई हु ,सारे फोटो मस्त उसमे कई फोटो मे आकाश इतना स्पष्ट और नीला दिख रहा है ,वैसा शहरो मे आजकाल देखने को नही मिलता। घुमते रहो और लिखते रहो मन प्रसन्न हो गया।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपने अपना नाम नही लिखा ?
अंजली प्रकाश दंडवते
ReplyDeleteगजब जा सचित्र वर्णन।सच मे पढ़ते वक्त ऐसा लग रहा था कि हम भी यात्रा में साथ है। बहुत ही सटीक शब्दो का चयन।भई वाह।
ReplyDeleteऐसे ही घूमते और लिखते रहिये।
मैं सुभाष केंदुरकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteमैं शब्दो की खिलाड़ी नही हूँ इसलिए अधिक नही लिख पाउंगी
जगह सच मे बहुत सुंदर है और आपका बताने का तरीका भी बहुत अच्छा है
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏼
Delete