TRIPURA-Farthest North Eastern state

 सुदूर उत्तर पूर्व त्रिपुरा दर्शन 

इस बार भारत के दूरस्थ हिस्से की यात्रा पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में उत्तर पूर्व तरफ़ यात्रियों की रुचि में ख़ासी बढ़ोतरी हुई है किंतु अब भी आसाम के अलावा मेघालय और कुछ हद तक अरुणाचल 

प्रदेश के तवांग का ही चलन बढ़ा है।आजभी सुदूर पूर्व त्रिपुरा,मिज़ोरम,मणिपुर एवं नागालैंड तरफ़ ये संख्या लगभग नगण्य ही है।

जब भोपाल से अगरतला तक सीधी रेल सेवा शुरू हुई तभी से मन में जाने का विचार चल रहा था।53 घंटे का लंबा प्रवास था सोच कर ही उत्साहित था,जब कुछ साथी तैयार हो गये तो प्रोग्राम बन ही गया।एसी 2 का एक ही कोच था तो शीघ्र ही टिकट बुक कर लिये।ऐन समय साथियों की व्यक्तिगत समस्याओं के चलते नये साथियों की तलाश की और भाग्य से मेरे छोटे भाई तैयार हो गये।

लंबा प्रवास और ट्रेन में पैंट्री नहीं थी तो दो दिन का भोजन साथ रखना था ( हालाँकि बाद में पता चला की रास्ते में कई जगह भोजन सप्लाई हो रही थी।


16 मार्च 2023

दोपहर साड़े तीन बजे भारत के सब से खूबसूरत स्टेशन रानी कमलापति ( भोपालसे ट्रेन रवाना हुई अपने लंबे 

गंतव्य पर….ईटारसी जबलपुर सतना (.प्र)….प्रयागराज छिऊकी मिर्ज़ापुर दीनदयाल उपाध्याय(पूर्व नाम मुग़लसराय)

 ( प्र) ….बक्सर दानापुर पाटलिपुत्र(पटनाहाजीपुर बेगूसराय कटिहार किशनगंज (बिहार)…न्यू जलपाइगुड़ी कूचबिहार(.बंगालरंगिया गुवाहाटी हॉफ़लॉंग करीमगंज कुमारघाट (आसामपार करते हुए 

लगभग पचपन घंटे की यात्रा के बाद 18 मार्च को रात्रि साड़े नौ बजे अगरतला स्टेशन पहुँचे।वहाँ हमने एक होमस्टे में रुकने की व्यवस्था की थी।वही दस बजे तक पहुँच के भोजन पश्चात आराम से सो गये।

सभी को लगता था ऊब जाएँगे इतनी लंबी यात्रा से किंतु आश्चर्य हम में से कोई भी नहीं ऊबा ….नये नये प्रदेश ….

वहाँ की भाषा खानपान रहनसहन लोग ।ये सब पहली बार देखते देखते कब एक के बाद एक दिन निकलता गया पता ही नहीं चला।गुवाहाटी के पश्चात तो रेलवे के प्रचंड प्रोजेक्ट देख कर स्तब्ध रह गये।ऊँचे ऊँचे पहाड़ो पर ब्रॉड गेज ट्रेन को चढ़ते उतरते देखना लंबी लंबी सुरंगों और गहरी घाटी पर नदियों पर बने 

ऊँचे पुल देख कर गर्वमिश्रित आश्चर्य हो रहा था।हमारे इंजीनियर्स की कार्यकुशलता पर अभिमान हो रहा था।

मैं सभी को सुझाव देना चाहूँगा की गुवाहाटी तक चाहे तो विमान यात्रा कर ले किंतु आगे की यात्रा रेल या 

सड़क मार्ग से करना ही आपके अंदर के यायावर को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करेगा।यहाँ किसी शहर विशेष तक पहुँचने का मार्ग देखना ही यात्रा का उद्देश्य होना चाहिए।


19 मार्च 2023

आज से त्रिपुरा का तीन दिन का प्रवास आरंभ किया। अगरतला एक सामान्य राजधानी है जहां अभी मेट्रो संस्कृति नहीं पहुँच पायी है।मॉल या मल्टीप्लेक्स का अभाव है।सिर्फ़ ऑटोरिक्शा चलते है। 

पहले दिन अगरतला स्थानीय आकर्षण उज्जयंता पैलेस म्यूजियम देखने निकले,(यहाँ यह बताना आवश्यक है की अगरतला में कोई स्थानीय पर्यटन हेतु आपको स्वयं ही व्यवस्था करनी होती है।टैक्सी सर्विस के लिए अनेक एजेंसीज़ उपलब्ध है जो प्रति किमी के आधार पर भ्रमण करा देती है।)

महल का निर्माण 1899 और 1901 के बीच महाराजा राधा किशोर माणिक्य देबबर्मा द्वारा किया गया था और यह यूरोपीय शैली से प्रेरित बगीचों से घिरी दो झीलों के किनारे पर खड़ा है। यह अक्टूबर 1949 में त्रिपुरा के 

भारत में विलय होने तक राजवंश का घर था।प्रसिद्ध संगीतकार स्व.सचिन देब बर्मन इसी राजघराने के एक राजकुमार थे उनका एक विशालकाय पोर्ट्रेट महल की एक दीवार पर स्थापित है।

उज्जयंत पैलेस अब एक राज्य संग्रहालय है और यह मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले समुदायों की 

जीवन शैली,कला,संस्कृति,परंपरा और उपयोगिता शिल्प को प्रदर्शित करता है बहुत सारी पत्थर की मूर्तियां,

 माणिक्य वंश के सिक्के और कुछअन्य कलाकृतियां भी यहाँ प्रदर्शित की गई है 








लगभग तीन घंटे ये देखने के बाद हमने सायंकाल बांग्ला देश सीमा पर होने वाले कार्यक्रम को देखने का तय किया।पूर्व में अटारी बाघा बॉर्डर की ही तर्ज़ पर यहाँ भी सायंकाल ठीक वैसा ही कार्यक्रम होता है फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है की पश्चिम में माहौल शत्रुतापूर्ण है जब कि यहाँ ये मित्रतापूर्ण माहौल में संपन्न होता है ।वहाँ हज़ारो की संख्या में लोग रहते है और यहाँ कुछ सौ मात्र।बहुत ही ख़ुशनुमा माहौल में कार्यक्रम संपन्न हुआ और हम भी आनंदित घर लौटे।


20 मार्च 2023

यहाँ के प्रसिद्ध स्थल याने यहाँ की रोड ट्रिप जिसमे चारों ओर घने जंगल बीच में बहती छोटी छोटी नादिया ,कुछ 

प्रसिद्ध मंदिर और यहाँ के राज महल 

यही के प्रसिद्ध नीर महल जाना था जो अगरतला से लगभग 55 किमी दूर स्थित है और यहाँ जाने के लिए टैक्सी के अतिरिक्त अन्य कोई साधन उपलब्ध नहीं है,स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस ज़रूर चलती है किंतु उसका समय एवं उपलब्धता किसी को ज्ञात नहीं रहती।

एक कैब हमने दो दिन के लिये लगभग पाँच हज़ार रू.में बुक कर निकल पड़े और लगभग दो घंटे में नीरमहल लेक के किनारे पहुँच गये।

यहाँ से बोट द्वारा जाते है और बोट की टिकट वितरण व्यवस्था अविश्वसनीय है ।जब तक बीस पर्यटक नहीं आते टिकट नहीं बाँटे जाते अतः हमे आधे पौन घंटे अन्य पर्यटकों का इंतज़ार करना पड़ा तभी हम सवारी कर पाये।पूरा सरोवर जल कुम्भी से भरा पड़ा था।कहीकही पानी के दर्शन हो रहे थे।बहुत अव्यस्थित था सारा नज़ारा।अंततः सरोवर के बीचोबीच स्थित सुंदर महल पहुँचे।


ये महल भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा और पूर्वी भारत में एकमात्र है। भारत में केवल दो जल महल हैंदूसरा जयपुर में  हालाँकिजयपुर वाला नीरमहल की तुलना में आकार में काफी छोटा है।

महल को दो भागों में बांटा गया है। महल के पश्चिमी भाग को अंदर महल के नाम से जाना जाता है। इसे शाही 

परिवार के लिए बनाया गया था। पूर्वी भाग एक ओपन-एयर थियेटर है जहां महाराजाओं और उनके शाही परिवारों के आनंद के लिए नाटकरंगमंच, नृत्य और अन्य 

सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। महल में कुल 24 कमरे हैं।

रुद्रसागर झील के पानी पर उतरने के लिए नीर-महल के अंदर दो सीढ़ियाँ हैं। महाराजा राजघाट से हाथ से चलने वाली नाव से महल जाते थे। छत परमहल भारत के सबसे खूबसूरत छत उद्यानों में से एक हैहालांकि खराब रखरखाव और पर्यटकों के संपर्क में कमी के कारण 

सुंदरता और भव्यता में कमी आई है।






हम पहुँचे तब G20 के सदस्यों का आगमन अपेक्षित होने से हर तरफ़ रखरखाव पुताई आदि चल रही थी ।महल की सुंदरता अप्रतिम थी,और शाही वैभव के समय में इसकी शान  शौक़त देखने लायक़ रही होगी।

अगला स्थान यहाँ का प्रसिद्ध शक्तिपीठो में शामिल एक त्रिपुरासुंदरी का मंदिर है।लगा था कामाख्या समान यहाँ भी भीड़भाड़ होगी,लंबी क़तारे होंगी किंतु ऐसा कुछ नहीं था हालाँकि चैत्र नवरात्रि चल रही थी।आधे घंटे में दर्शन किए और एक स्थानीय भोजनालय में भोजन किया जहां चावल के अतिरिक्त और कुछ उपलब्ध नहीं था।त्रिपुरा में रोटी आदि बहुत कम जगह मिलती है इसके लिए आपकोअतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

आगे प्राणी संग्रहालय देखा जो की अव्यवस्था की अन्य मिसाल था।और वापस लौटे।


21 मार्च 2023

आज नाश्ते के बाद यहाँ के अत्यंत सुंदर स्थान चाबिमुरा भ्रमण के लिये निकले।जैसा की पूर्व में लिख चुका हूँ रास्ते की सुंदरता के बारे में,वैसे ही रास्तों से होते निकल पड़े जो की लगभग 90 किमी दूर है 

गोमती नदी पर बोटिंग हेतु व्यवस्था भी नीरमहल समान थी।या तो पूरी बोट किराए पर लीजिये या अन्य पर्यटकों का इंतज़ार कीजिए।भाग्य से जल्दी ही बोट भरने लायक़ पर्यटक  गये और हम निकल पड़े।इस नदी और आसपास के क्षेत्र को Amazon of India कहाजाता है 


चबीमुरा

रहस्यवादी पहाड़ी मूर्तियां ही वह कारण हैं जिसके कारण पर्यटक चबीमुरा आते हैंलेकिन वहां तक पहुंचने की यात्रा और भी रोमांचकहै। बोटिंग डेटमुरा बोटिंग पॉइंट से शुरू होती है और आप दोनों तरफ की पहाड़ियों पर घने जंगलों के साथ एक तेज़ बहने वाली पहाड़ी नदी के माध्यम से नौका विहार करते है।यात्रा निश्चित रूप से किसी में भी विस्मय जगाती है। 

यात्रा के आधे रास्ते मेंआप एक गुफा पर रुकते हैं। नाव किनारे पर रुकेगी और पर्यटकों को एक गुफा के प्रवेश 

द्वार तक करीब 200 मीटर पैदल चलना होगा। यह यात्रा सख्ती से प्रकृति और रोमांच प्रेमियों के लिए है। 200 मीटर की पैदल दूरी एक बारहमासी बहनेवाली धारा के माध्यम से हैचलने के हिस्से में कुछ जोखिम भरे और फिसलन 

भरे पत्थर शामिल हैं और जब आप गुफा तक पहुँचते हैंतो आपको केवल बाहर का नज़ारा देखने को मिलेगा क्योंकि अंदर बिल्कुल अंधेरा है। हालांकिसाहसिक और प्रकृति प्रेमियों के लिएगुफा की सैर एक बहुत ही फायदेमंद 

अनुभव हो सकता है।

हम नाव पर वापस लौटें और पहाड़ी की दीवारों पर देवी दुर्गा की 20 फीट लंबी वक्रताचाविमुरा के मुख्य आकर्षण के लिए अपनी यात्रा में आगे बढ़े ।पर्यटकों को नाव से नीचे उतरने और कर्विंग देखने और तस्वीरें लेने की अनुमति है

यहां थोड़ी देर रुकने के बाद हम नौकाविहार बिंदु पर अपनी वापसी की यात्रा शुरू की।पूरे दौरे को पूरा होने में एक से डेढ़ घंटे के बीच का समय लगा।







यहां नौका विहार गतिविधि पिछले कुछ वर्षों में ही शुरू हुई है और चाविमुरा में पर्यटन गतिविधि अपने शुरुआती 

चरण में है।तो एकविकसित पर्यटन बुनियादी ढांचे की अपेक्षा  करेंलेकिन जगह की प्राकृतिक सुंदरता और रॉक नक्काशियां निश्चित रूप से आपकेविस्मय को प्रेरित करेंगी।

सायं पाँच बजे तक लौटे ।आज का दिन त्रिपुरा में अंतिम था कल प्रातः ही हमे मणिपुर की राजधानी हेतु ट्रेन पकड़नी थी।

उसका वर्णन अगले भाग में।

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है।
    एक एक शब्द सार्थक प्रयास है।

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