SAURASHTRA Gujarat Trip Part 2

 गुजरात यात्रा भाग 2

दोपहर के दो बजे थेहम भी लौट कर ओखा आये,हमारी गाड़ियो पर धूल की मोटी पर्त जमी हुई थीसाफ़ सफ़ाई का दौर पूरा कर हम अगली यात्रा पे निकल पड़ेअगला पड़ाव था प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर।
जो की लगभग तीन सौ किमी दूर थासोचा था पोरबंदर के आसपास किसी अच्छे से होटल में रुक कर रात्रि विश्राम कर लेंगे। जैसे जैसे आगे बढ़ते गयेमाधवपुर, मंगरोल, केशोद कही अच्छे होटल दिखाई नहीं दिये,
अंततः हमने सोमनाथ में ही पड़ाव डालने का निश्चय किया और रात्रि आठ बजे सोमनाथ पहुँचे. लगा भगवान शंकर आज हमारी परीक्षा लेने पर उतारू हैसात आठ होटल में गये कही रूम उपलब्ध नहीं थे,अंततः एक होटल काफ़ी भारी क़ीमत में मिला जिसमे सुविधा न्यूनतम थी किंतु मरता क्या ना करता के भाव लिए हमने चेक इन कियाफिर डिनर के लिए कही ख़ाली जगह नही थीहर जगह वेटिंग…. 
तब मुझे कैम्प का सुव्यवस्थित लंच डिनर याद  गया।
डिनर कर होटल में लौट कर सो गयेमहिलायें अवश्य प्रसन्न थी की छोटे से टेंट से छुटकारा मिला।


27 दिसंबर 2022

सुबह सब से पहले सोमनाथ के दर्शन करने निकलने की योजना थी ताकि भीड़ से सामना ना हो ,

उसके बाद ही नाश्ता किया जायेगा ये तय हुआ,

होटल के पास ही मंदिर था,व्यवस्थित पार्किंग थी,और निकल पड़े दर्शन हेतु,

गहन आश्चर्य,सब कुछ इतना व्यवस्थित था कि सारी शंकाये निर्मूल साबित हुई,जूते चप्पल से ले कर अन्य क़ीमती सामान रखने की अति उत्तम व्यवस्था,दर्शन हेतु स्त्री पुरुषों की अलग अलग लाइन,पुलिस और 
वालंटियर मुस्तैद,

 सब कुछ चाकचौबंद …..एक दिन पहले की द्वारिकाधीश मंदिर की अव्यवस्था और यहाँ की अत्यंत सुंदर व्यवस्था में कोई साम्य नहीं था,भव्य अत्यंत दर्शनीय नवनिर्मित मंदिर की आभा से मन प्रफुल्लित हो उठा,
पीछे ही कही पुराने मंदिर के अवशेष आज भी है जिसे मुग़लों ने कई कई बार लूटा था,नया मंदिर लौह पुरुष सरदार पटेल ने बनवाया थाप्रसन्न उल्लसित मन से प्रसाद प्राप्त किया और नाश्ता करने एक छोटे से होटल में बैठे और गुजरात की प्रसिद्ध फाफड़ा जलेबी का सेवन किया।

लौट कर चेक आउट किया और रास्ते में प्रभास तीर्थ के दर्शन किए जहां श्रीकृष्ण ने प्राण त्यागे थे।

अगले तीन दिन विश्व प्रसिद्ध गिर राष्ट्रीय उद्यान के एक रिसोर्ट में हमारा निवास बुक था जो की सोमनाथ से 
अस्सी किमी दूर सासनगिर के निकट था,

थोड़ी देर की ड्राइव के बाद हम गिर के जंगल क्षेत्र में प्रवेश कर गये,

अब सब की इच्छा थी कि कही सिंह के दर्शन हो जाये,अक्सर वीडियो देखे है जिसमे हाईवे पर गाड़िया रुकी देखी और सिंहो के परिवार रास्ता रोक के खड़े है ,किंतु यहाँ भी निराशा ही हाथ आयी,

सासन गिर के मुख्य द्वार पर हमारे रिसोर्ट के मलिक श्री किशोर भाई हमारा इंतज़ार कर रहे थे,परिचय आदि के पश्चात उनकी गाड़ी केपीछे हम चल पड़े ,मुख्य मार्ग छोड़ कर जंगल के कच्चे रास्ते से होते हुए अक्षर 
फ़ार्म्स नामक एक खूबसूरत फ़ॉर्म हाउस पहुँचे ,बेहद शांत,आम के पेड़ो से घिरा हुआ,साथ में स्विमिंग पूल और पाँच कॉटेज़….

हर कॉटेज में चार लोगो के रहने की व्यवस्था थी,आम की छाया में खटिया बिछी हुई थी,सब लोग पहले तो 
वही आराम करने लगे,फिर अपने कॉटेज में जा कर स्नान आदि से निवृत्त हुए तब तक लंच का बुलावा  
गया थागुजरात के भोजन में थोड़ा मीठा डालने की परम्परा है,बहुत ही स्वादिष्ट लंच जिसमे खिचड़ी और 
छाछ आवश्यक जान पड़े,छक कर लंच ले कर आराम किया,पिछले हफ़्ते भर से दोपहर में अति व्यस्त कार्यक्रम रहे और आने वाले दिन भी व्यस्त ही रहने वाले थे तो आज का आराम नई ऊर्जा दें गया था.






गुजरात के बारे में एक बात जो बहुत कम लोग जानते है वो ये की यहाँ के जम्बूर गाँव में अफ्रीकी लोगो का आवास है,ये लोग यहाँ कैसे आये इस बारे में पक्के तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता ,इन लोगों के बारे में 
एक कहानी बड़ी मशहूर और दिलचस्प है।इसके अनुसारजब जूनागढ़ के नवाब अफ्रीका गए थेतो वे वहां अफ्रीकी महिला के प्यार में पड़ गए थे।जब ये महिला भारत आईतो अपने साथ कई गुलामों को ले आई थी। ये लोग फिर लौटकर नहीं 

गए और गुजराती सिद्धी बनकर रह गए।असल में ये लोग कब और कैसे यहां आए हैंकोई नहीं जानतालेकिन इनका अस्तित्व भारत में 200 साल 
पुराना है।

दिलचस्प बात यह है कि अफ्रीकी होते हुए भी ये लोग अपनी भाषा को छोड़कर गुजराती भाषा बोलना पसंद करते हैं।ये लोग भले ही गुजरात में रहकर गुजराती बोलते हैंलेकिन जब बात खुशी जाहिर करने की आती हैतो 
अफ्रीका का कल्चर ही अपनाते हैं। खुशी के मौके पर ये लोग अफ्रीकी डांस करते हैं।यह उनकी अजीविका चलाने का साधन भी है।अगर आप कभी गुजरात जाएंतो आपको इस गांव को घूमने जरूर जाना चाहिए. वास्तव में आप भारत में एक अलग ही अनूठी संस्कृति का अनुभव कर पाएंगे।

हालांकिभारत में रहना इन लोगों के लिए आसान नहीं है। इन्हें कई भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

 फिर भी ये लोग खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अगर आप कभी जम्बूर गांव जाएंतो आप समझ पाएंगे कि ये लोग कितने अलग और अनोखे हैं।

मुझे भी ये सारी जानकारी गूगल मैडम से ही मिली है।

ये सब लिखने का तात्पर्य ये की आज शाम को इन्ही अफ़्रीकी लोगो के नृत्य एवं उनके अन्य कार्यक्रम का 
आयोजन फ़ॉर्म हाउस में किया जाना था,ये लोग आसपास के रिसॉर्ट्स आदि में ऐसे ही कार्यक्रम द्वारा अपनी आजीविका कमाते है,

निर्धारित समय पर ये दस बारह लोग पधारे ,पहले थोड़ा परिचय थोड़ी चुहलबाज़ी के पश्चात इन्होंने अफ़्रीकी नृत्य शुरू किया और हम लोगो को भी साथ ले लिया,सभी आनंदित हो उनके साथ नृत्य करने लगे,बाद में 
उन्होंने अग्नि के साथ तरह तरह के करतब किए जिन्हें देख कर हम लोग अवाक् रह गये,मुँह से आग निकलना,जलते अंगारे खा लेना ,ऐसे अनेकानेक करतब देख के सभी लोग भौचक्के रह गये थे,अंत में सभी ने इनके साथ फोटो लिये और इन्हें कुछ राशि प्रदान की,वो लोग भी प्रसन्न भाव से बिदा हुए और हमे एक नया ही 
अनुभव दे गये जिसके बारे में आम भारतीय आज भी अनजान है।







28 दिसंबर 2022

सासन गिर से लगभग सौ किमी दूर एक द्वीप पर पुर्तगालियों का एक पुराना उपनिवेश बसा हुआ है जिसे 
कम ही लोग जानते है….
सभी ने गोवा दमन दिव एक साथ सुना हुआ है पर दिव कहा है कैसा है ये सिर्फ़ घुमक्कड़ पर्यटक ही जानते है,आज़ादी के बाद ये भी भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है और पुर्तगाली वास्तुकला का उदाहरण भी है,

आज यही जाने का कार्यक्रम था,सुबह आठ बजे निकल गये ग्यारह बजे पहुँच गये,यहाँ ये बताना चाहूँगा की गुजरात में मद्य निषेध है किंतु चौतरफ़ा गुजरात से घिरे इस द्वीप पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है और सुराप्रेमी 
इसी कारणवश दिव जाना पसंद करते है,हम में से कुछ का भी यही उद्देश्य था।

दिव में देखने योग्य बहुत सी जगह है,यहाँ का क़िला,चर्च,और ढेर सारे बीचेस,सब मिलकर इसे एक बहुत 
सुंदर पर्यटन स्थल बनाते है,आईएनएस खुखरी को यहाँ एक मोनूमेंट बना दिया गया है,

आगे जालंधर बीच है,( पता नहीं ये नाम क्यों पड़ा),पर पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र था नागोआ बीच…. सभी तरह की सूख सुविधाओं से भरपूर,समुद्र स्नान के लिए अत्यंत उपयुक्त,वॉटरस्पोर्ट्स की सारी सुविधाएँ,और तरह तरह के रेस्टॉरेंट्स,एक पर्यटक और क्या चाहेगा ?

पूरा दिन व्यतीत कर सायंकाल लौटे तो थक के चूर थेचाय नाश्ता कियारात को डिनर के बाद नींद.








29 दिसंबर 2022

छुट्टियों का सीजन होने के कारण सासन में काफ़ी संख्या में पर्यटक आये हुए थे,और जंगल सफारी के लिए काफ़ी पहले से स्लॉट बुकिंग हो जाती है,हम लोग भी पहले से ही अपनी बुकिंग कर गये थे तो आज हमारा 
सफारी का दिन था,

हमारे रिसोर्ट से लगभग बीस किमी दूर देवलिया सफारी पार्क है जहां उन सिंहों को रखा जाता है जो या तो 

आदमख़ोर हो जाते है,या स्वस्थ नहीं होते या अधिक आयु होने के कारण स्वयं शिकार नहीं कर पाते।

हम समय से पूर्व पहुँच गये थे,निश्चित समय पर हमारी बस आयी और उसके सवार हो लिये,

लगभग एक घंटे की सफारी में पहले दस मिनट तो सिर्फ़ जंगल ही दिखा तो लगा कही डॉल्फिन की तरह 
सिंह भी तो धोका नहीं दें रहे,किंतु तुरंत ही शंका निर्मूल साबित हुई और वनराज के दर्शन प्राप्त हुए,संख्या में छह से आठ बैठे थे,यात्रियों का विशेष कर युवाओंका उत्साह चरम पर था,लगभग पंद्रह मिनट वही खड़े रहे पर आख़िरकार आगे बढ़ना ही था,सिंह तो अपनी जगह दिन भर बैठे रहेंगे कब तक कोई रुकेगा।

थोड़ा ही आगे एक जगह बस रुकी तो देखा एक बड़े से बाड़े में तेंदुए भरे पड़े थे,संख्या में कहे तो अनगिनत थे,इनमें ज़्यादातर इसलिए पकड़े गये क्योंकि ये गाँववालो के मवेशी और बच्चों बूढ़ों का शिकार करते थे,इस तरह का एक और बाड़ा आगे भी था ,दोनों मिला कर लगभग बीस से तीस तेंदुए रहे होंगे,

पूरा घंटा व्यतीत कर बाहर आये इस संतोष के साथ की सिंहों के दर्शन हो गये,हालाँकि देवलिया में निश्चित होता है इनका दिखाई देना।वास्तव में जंगल में इन्हें देखना रोमांचकारी अनुभव होता है,मेरे पिछले प्रवास में(यूथ हॉस्टल का ही गिर 
फारेस्ट ट्रेक तीन दिन का)रिसोर्ट के ही एक व्यक्ति ने गाँव वालों के सहयोग से हम कुछ ट्रैकर्स को जंगल में ले जा कर सिंहों के पास तक ले जा कर दिखाए,(हालाँकि बाद में पता लगा कि ये पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी था और बेहद ख़तरनाक भी थाउसी ट्रेकिंग में हमे ओपन जीप सफारी में भी जाने का अवसर मिला जिसमे सिंहों के परिवार आराम करते दिखाई दिये थे।

यहाँ भी रिसोर्ट में एक व्यक्ति ने हमसे कहा की रात में सिंह दिखाने की व्यवस्था की जा सकती है जो की हमने स्वीकार नहीं किया।

बस से उतर कर वही के जंगल शॉप में सभी ने शॉपिंग की और सिंहों की फोटो छपे टी शर्ट्स या टॉप या 
फ़ुल पेंट्स आदि ख़रीदे जो कीआश्चर्यजनक रूप से सस्ते भी थे।अधिक संख्या में यात्री होने से कैंटीन व्यवस्था चरमरा गई थी एवं समोसे आदि समाप्त हो गये थे,

दोपहर वापस आये तो स्वादिष्ट लंच बिल्कुल तैयार था।हमारे साथ अक्सर नॉन वेज खाने वाले परिवार भी यहाँ का शाकाहारी भोजन करते हुए प्रसन्न थे।

आज का दिन ट्रिप का अंतिम दिन था और कुल मिलाकर इसे सफल कहा जा सकता था,

आराम के अलावा अब कोई काम नही था,अगले दो दिन लंबी लंबी ड्राइव कर वापस घर पहुँचना था।









30 एवं 31 दिसंबर 2022

जाते समय जो उत्साह था वो लौटते समय कभी भी नहीं रहता उसमें भी कार ड्राइवगिर से सुबह पाँच बजे निकले ताकि भोपाल तक का अधिकांश हिस्सा कवर किया जा सके.

पूरे यात्रा में गुजरात के हाईवेज़ बहुत ही अच्छी तरह मैंटेन किए गये मिले,कही सिक्स लेन तो कही कही 

एट लेन सड़के ड्राइवरों के लिए स्वर्ग समान थी,जिस कार में मैं सवार था उसे सारे ढाई हज़ार किमी मेरे छोटे भाई मनोज ने ही चलाई
(उसे ड्राइविंग का बहुत शौक़ है,या फिर हो सकता है मेरी ड्राइविंग पर भरोसा ना हो)

मैं हर दिन आराम से बैठा रहा थापहले दिन झाबुआ तक (600 किमीपहुँचे वही रात्रि विश्राम किया,झाबुआ मेरे दादा जी का जन्म स्थान रहा है. 

और मैंने अक्सर उनके मुँह से इसके बारे में सुना था पर किसी दिन एक रात वहाँ बीतेगी इसकी कभी 
उम्मीद नहीं थी।आज हमारे ही एक साथी मित्र की पत्नी का जन्म दिन भी था तो केक आदि काट कर सेलिब्रेट किया,

होटल में डिनर किया,अगले दिन सिर्फ़ साड़े तीन सौ किमी का ही सफ़र बचा था इसलिए सुबह जागने की किसी 

को जल्दी भी नहीं थी 

अगला दिन वर्ष का अंतिम दिन था एवं इंदौर में बहनोई ने आग्रह किया की न्यू ईयर उनके घर मनाए तो हम दो कार के लोग इंदौर रुक गए और चार साथी आगे भोपाल निकल गये,

हम लोग भी नववर्ष के दिन सुबह आठ बजे निकल कर ग्यारह बजे अपने अपने घर सकुशल पहुँच गये 

इस तरह हमारी गुजरात यात्रा संपन्न हुई।

हम बारह लोग याने….

कार .

.संजीव  साधना जोशी

.मनोज  माया जोशी 

कार .

.राजीव  संगीता जोशी

.मिलिंद और मीनल केळकर 

कार .

.इक़बाल सिंह  जसविंदर कौर

.अवतार सिंह  हरजीत कौर 


फिर से मिलेंगे अगली यात्रा के बाद……🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼


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